प्रोग्राम्ड यूनिवर्स 7
क्या ब्रह्माण्ड में एलियन सभ्यतायें हैं
अगर इन रोमांच पैदा करने वाली फिल्मों, किताबों से इतर व्यवहारिक धरातल पर इन संभावनाओं का आकलन करें तो निराश करने वाला जमीनी सच यही है कि अभी तक हम एक भी स्पष्ट प्रमाण नहीं जुटा पाये हैं कि यह स्थापित कर सकें कि ऐसा वाकई है। संभावनाओं के नाम पर ढेरों किस्से कहानियाँ हैं जो मूफान आर्काइव में सुरक्षित हैं, डाक्टर एलिस सिल्वर की थ्योरी है कि दरअसल हम खुद ही प्लेनेट अर्थ पर एलियन हैं... एरिया फिफ्टी वन-टू के नाम पर दो ऐसे अमेरिकी रेस्ट्रिक्टेड एरियाज हैं, जो परग्रही जीवन से जुड़े हैं.. यह आपको देखना है कि क्या आपको यकीन के लायक लगता है।
Source of Wow Signal |
इनके सिवा तीन रेडियो सिग्नल हैं— जिनमें एक है 2015 में रशियन रेडियो ऑब्जर्वेट्री द्वारा रिकार्ड किया गया 11 गीगाहर्ट्ज की फ्रीक्वेंसी का ताकतवर रेडियो सिग्नल, जो मात्र दो सेकेंड का था और जिसका स्रोत था HD164585 सोलर सिस्टम में एक ग्रह— जिसके बारे में उम्मीद की जा रही है कि वहां कोई इंटेलिजेंट सिविलाइजेशन हो सकती है— लेकिन अभी कुछ भी प्रमाणित नहीं है।
दूसरा है कॉस्मिक रोअर— जुलाई 2006 में एक अलग किस्म का सिग्नल कैच किया गया जिसे कॉस्मिक रोअर के रूप में जाना जाता है। अंतरिक्ष में सभी प्रकार के पिंड रेडियो सिग्नल पैदा करते हैं— हमारी पृथ्वी भी। इसी के मद्देनजर टैक्सास में नासा के कोलंबिया साइंटिफिक बलून फैसिलिटी से आर्केड नाम का गुब्बारा छोड़ा गया था, जिसमें हर तरह की रेडियो तरंग को सुनने वाले यंत्र लगे थे— लेकिन इसने कहीं बहुत दूर से आती एक दहाड़ रिकार्ड की, जो तरंगों की तुलना में काफी तीव्र थी। इसका स्रोत लापता था— पहले सोचा गया कि यह आसपास की किसी गैलेक्सी से आया है, लेकिन कोई गैलेक्सी इतने तीव्र सिग्नल नहीं पैदा कर सकती।
अब आते हैं 'वाऊ' नाम के उस स्ट्रांग नैरोबैंड सिग्नल पर, जो 1977 में प्राप्त हुआ था। यह ओहायो स्टेट यूनिवर्सिटी के बिग इयर रेडियो टेलिस्कोप से सुना गया था और स्रोत 120 प्रकाशवर्ष दूर सैजिटेरियस तारामंडल था जो एक कृत्रिम विचलन को दर्शा रहा था और जिसे जेरी आर एहमन द्वारा 'वाऊ' के रूप में डिकोड किया।
दशकों तक इसके पीछे माथापच्ची होती रही फिर हाल ही में सेंटर ऑफ प्लेनेटरी साइंस के कुछ संशोधनकर्ताओं ने इसे हल करते हुए बताया कि यह संकेत एक धूमकेतु से आया था जो उस वक्त उस तारामंडल में मौजूद था। इसकी फ्रीक्वेंसी 1420 मेगाहर्ट्ज थी जो साधारण हाइड्रोजन की उत्सर्जन आवृत्ति है और धूमकेतु पर मौजूद हाइड्रोजन के बदलाव भी ऐसे संकेत प्रसारित करते हैं।
ब्रह्माण्ड में दूसरे ग्रहों पर भी जीवन हो सकता है
बहरहाल— इन बातों को छोड़ के अगर हम गौर करें कि क्या वाकई पृथ्वी के सिवा कहीं जीवन हो सकता है तो जवाब है हां— बस इसके लिये किसी ग्रह को अपने सौरमंडल में सही स्थिति और सही जगह होना जरूरी है, जिसे गोल्डन रिंग या गोल्डी लॉक जोन कहते हैं और हमारी गैलेक्सी यानि मिल्की वे में ही ऐसे करोड़ों ग्रह हैं जो जीवन पनपने के लिये अनुकूल स्थितियाँ रखते हैं। पूरे ऑब्जर्वेबल यूनिवर्स में खरबों हो सकते हैं। यह अलग बात है कि हजार से लाख प्रकाशवर्ष दूर तक जहां हम देख पाये हैं— वहां जीवन बहुत शुरुआती दौर में तो हो सकता है, जिसे हम डिटैक्ट नहीं पाये हैं।
लेकिन फिलहाल यह तय है कि हमारे आसपास कहीं भी उतनी दूरी तक, जहां तक रोशनी की गति से पंहुचना संभव हो— एक भी ऐसा ग्रह नहीं है जहां किसी तरह की अप्राकृतिक गतिविधि डिटेक्ट कर के हम यह दावा कर सकें कि वहां कोई हमारे जैसी आधुनिक सभ्यता रहती है और यह पक्के तौर पर तय है कि हमारे आसपास कोई भी ऐसी आबादी या जीवन वाला प्लेनेट नहीं है जहां से कोई हम तक आ सके या हम उन तक पंहुच सकें।
और जो रोशनी की गति के नियम को तोड़ कर हम तक पंहुच सके— उसके बारे में एक चीज पक्के तौर पर तय है कि वह कोई टाईप थ्री सिविलाइजेशन ही हो सकती है और ऐसी सभ्यता ब्रह्मांड में अपना विस्तार करने के उद्देश्य से आगे बढ़ रही होगी, जिसके लिये हम कीड़े मकोड़ों से ज्यादा नहीं होंगे।
इस बात के बहुत कम चांसेज हैं कि वह हमसे दोस्ताना रवैया अख्तियार करेगी— बल्कि उसके लिये हमारे नेचुरल रिसोर्सेज अहम होंगे और हम अगर उनकी योजना में किसी रूप में फिट हुए तो या तो मजदूर के रूप में होंगे या चारे के रूप में। इसलिये उम्मीद यह कीजिये कि वे कहीं हैं भी तो हम तक न पंहुचें— क्योंकि दोस्ती बराबर वालों में होती है।
अब एक सवाल यह है कि वे अगर हैं भी तो कैसे होंगे— यह हमारी लिमिट है कि हम उतना ही सोच सकते हैं, जितना हमने कभी न कभी, किसी न किसी रूप में देखा हो। यानि हम एलियन की कल्पना भी करते हैं तो हांड़ मांस के अजीब गरीब शक्ल वाले विचित्र प्राणी बना लेते हैं जिनके उदाहरण 'कोई मिल गया' के जादू से ले कर 'अवतार' 'गार्जियन ऑफ द गैलेक्सी' 'स्टार वार्स' 'जॉन कार्टर' या 'एवेंजर्स' जैसी फिल्मों से ले सकते हैं।
One Type of Alien |
लेकिन हकीकत यह है कि वे हमारी सोच, हमारी कल्पनाओं से बिलकुल भिन्न हो सकते हैं। वे किसी और तत्व से बने हो सकते हैं जो अभी हमारे ज्ञान के दायरे से बाहर हो.. वे गैस से बने हो सकते हैं.. वे ऊर्जा से बने हो सकते हैं जैसी कल्पना 'डार्केस्ट ऑवर' फिल्म में की गयी है जहां एलियन हमारे प्लेनेट पर धातु के लिये आते हैं और वे ऊर्जा से बने होते हैं और हमारे लिये पूरी तरह अदृश्य होते हैं, जिन्हें बस इलेक्ट्रिकल ऑब्जेक्ट से डिटेक्ट किया जा सकता है। ऐसी और भी बहुतेरी संभावनायें हो सकती हैं।
यकीनन उनके अपने कांसेप्ट होंगे और उनकी अपनी मान्यतायें होंगी— शायद उन्होंने भी हमारी तरह अपनी कल्पना के ईश्वर गढ़ रखे हों या शायद उनकी समझ हमसे बेहतर हो और उन्होंने ब्रह्मांड के रहस्य को हल कर लिया हो।
क्या ईश्वर हो सकता है
अब एक सबसे महत्वपूर्ण चैप्टर— क्या कोई ऐसा ईश्वर हो सकता है जो बाकायदा धर्मग्रंथों के हिसाब से हम पर लगातार दृष्टि बनाये हुए है, हमारे कर्मों को लिख रहा है और एक दिन हमारे कर्मों के हिसाब से हमें सजा या इनाम देगा— तो इसे समझने के लिये बेहतर तरीका यह है कि इस यूनिवर्स के अकार्डिंग अपनी स्थिति समझें।
हम जिस पृथ्वी पर रहते हैं, उस पृथ्वी से सबसे नजदीकी पिंड चंद्रमा है, लेकिन इसके बीच भी इतनी दूरी है कि तीस पृथ्वी आ जायेंगी और अगर हम सौ किलोमीटर की गति से चंद्रमा की तरफ चलें तो भी एक सौ साठ दिन लग जायेंगे।
इसके बाद हमारा एक नजदीकी ग्रह मंगल है जो 225 से 400 मिलियन किमी की दूरी (परिक्रमण की भिन्न स्थितियों में) पर है, जहां रोशनी को भी पंहुचने में बीस मिनट लग जाते हैं, स्पेस में रोशनी से तेज और कोई चीज नहीं चल सकती और रोशनी की गति लगभग तीन लाख किमी प्रति सेकेंड होती है।
अब अगर हम इस सौरमंडल से बाहर निकलें तो पंहुचेंगे इंटरस्टेलर नेबरहुड में जहां दूसरे सौरमंडल हैं। अपने सोलर सिस्टम में आप दूरी को एस्ट्रोनामिकल यूनिट (पृथ्वी से सूर्य की दूरी) में माप सकते हैं लेकिन बाहर निकलने पर दूरी मापने के लिये प्रकाशवर्ष (9.461 ट्रिलियन किलोमीटर) का प्रयोग करना पड़ता है, यानि उतनी दूरी जितना सफर सूर्य की रोशनी एक साल में करती है।
Distance of Proxima |
सूरज के बाद हमारा सबसे नजदीकी तारा प्राक्सिमा सेंटौरी है जो हमसे 4.24 प्रकाशवर्ष दूर है... अगर वोयेजर यान की गति (17KM/प्रति सेकेंड) से ही उस तक पंहुचने की कोशिश की जाये तो हजारों साल लग जायेंगे। अब यह सोलर मंडल जिस गैलेक्सी का हिस्सा है, खुद अपनी गैलेक्सी का फैलाव एक लाख प्रकाशवर्ष का है, जिसमें बीस हजार करोड़ तारे और ग्रह हैं और मजे की बात यह है हम रात में उनका सिर्फ एक प्रतिशत देख पाते हैं। हमारे खुद के सूर्य को अपनी गैलेक्सी के केन्द्र का एक चक्कर लगाने में बीस करोड़ साल लगते हैं।
अब इससे भी हम थोड़ा और दूर जायें तो हमें मिलेगा लोकल ग्रुप ऑफ गैलेक्सीज, जिसमें 54 गैलेक्सीज हैं और इसका फैलाव (एक सिरे से दूसरे सिरे तक) एक करोड़ प्रकाशवर्ष है।
और जब इस सर्कल को जूमआउट करेंगे तो मिलेगा वर्गो सुपर क्लस्टर— जिसका फैलाव ग्यारह करोड़ प्रकाशवर्ष है, तो सोचिये कि यह सर्कल कितना बड़ा होगा— लेकिन यह बड़ा सा सर्कल भी लैनीकिया सुपर क्लस्टर में मात्र एक राई के दाने बराबर है, जिसमें एक लाख तो गैलेक्सीज हैं और इसका फैलाव 52 करोड़ प्रकाशवर्ष का है।
अब यह भी सबकुछ नहीं है, बल्कि यह टाईटैनिक लैनीकिया सुपर क्लस्टर का एक छोटा सा हिस्सा भर है, और लैनीकिया सुपर क्लस्टर एक छोटा सा हिस्सा भर है उस ऑबजर्वेबल यूनिवर्स का— जिसे हम आज तक देख पाये हैं। जिसमें कुल दो लाख करोड़ गैलेक्सीज हैं, हमारी पृथ्वी से इसके एक सिरे की दूरी 4,650 करोड़ प्रकाशवर्ष है, यानि कुल फैलाव 9,300 करोड़ प्रकाशवर्ष का है।
हमारे यूनिवर्स की उम्र 13.7 अरब वर्ष की मानी जाती है, क्योंकि उससे पहले की रोशनी अब तक डिटेक्ट नहीं की जा सकी... कास्मिक इन्फ्लेशन थ्योरी के अनुसार इसके पार भी मल्टीवर्स हो सकता है, जिसके एग्जेक्ट फैलाव का कोई सटीक अनुमान नहीं लगाया जा सकता और संभव है कि पूरा ऑब्जर्वेबल यूनिवर्स ही पृथ्वी पर फुटबाल जैसी (पूरे सुपर यूनिवर्स में तुलनात्मक रूप से) हैसियत रखता हो।
ब्रह्माण्ड के हिसाब से हमारी स्थिति
बहरहाल 54 गैलेक्सीज वाला इतना बड़ा लोकल ग्रुप, ऑब्जर्वेबल यूनिवर्स का मात्र 0.00000000001 प्रतिशत है, और इसमें इतने ग्रह हैं जितने पूरी पृथ्वी पर रेत के जर्रे भी नहीं हैं। सोचिये हम यूनिवर्स में कहां एग्जिस्ट करते हैं और हमारी हैसियत क्या है।
Expansion of Universe |
अब जो हमारा यूनिवर्स है, समझिये कि किसी गुब्बारे की तरह यह चारों तरफ से एक्सपैंड हो रहा है... रोशनी से भी तेज गति से। इसका मतलब यह हुआ कि हम जो सबसे पुरानी 13.7 अरब वर्ष पुरानी रोशनी डिटेक्ट करके इसके टोटल साइज का अंदाजा लगाते हैं— वह साईज एक्चुअल में तब रहा होगा, जब यह रोशनी चली होगी, वर्तमान में यह साईज कई गुना बढ़ चुका होगा और इतना भी पर्याप्त नहीं है— और वैज्ञानिकों के अनुसार यह पूरा ऑब्जर्वेबल यूनिवर्स बस एक हिस्सा है उस सुपर यूनिवर्स का, जहां अनगिनत पैरेलल यूनिवर्स हो सकते हैं।
Written by Ashfaq Ahmad
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