एटम्स/ATOMS

 

एटम्स क्या हैं 

अगर वाकई आप इस यूनिवर्स को समझना चाहते हैं तो आपको एक चीज जरूर समझनी चाहिये.. एटम्स को, क्योंकि आप अपने आसपास से ले कर सुदूर अंतरिक्ष में जो भी देखते हैं वह लगभग सब एटम्स से बना है, कुल मिलाकर अब तक ज्ञात सौ से ऊपर एटम्स इसमें प्रयोग हुए हैं।

इन एट्म्स के संयोजन से मैटर बनता है जो इस यूनिवर्स में देखा जा सकने वाला सबकुछ है। इसकी यूजुअली तीन श्रेणियों से हमारा पाला पड़ता है जिन्हें हम साॅलिड, लिक्विड और गैस के रूप में देखते हैं लेकिन दो और स्टेट होती हैं प्लाज्मा और बोस आइंस्टाइन कंडेंसेट के रूप में जिनका हमसे कोई खास वास्ता नहीं।
अब यह एटम्स क्या है.. बेहद मोटे अंदाज में समझिये, कि एक न्युक्लियस यानि सेंटर होता है जहाँ प्रोटाॅन और न्युट्रान होते हैं जो एक दूसरे से जुड़े होते हैं और एक इलेक्ट्रान होता है जो इसके चारों तरफ चक्कर लगाता है.. न्युक्लियस में जितने ज्यादा प्रोटाॅन्स होंगे उतने ज्यादा इलेक्ट्रान्स होंगे, यह बिलकुल घर की बिजली की तरह समझिये कि प्रोटाॅन पाॅजिटिव वायर है और इलेक्ट्रान निगेटिव, न्युट्रान न्यूट्रल होता है और उसमें चार्ज नहीं होता।

लेकिन चूंकि प्रोटाॅन तो एक से ले कर सौ से ज्यादा तक हो सकते हैं तो उस हिसाब से इतने इलेक्ट्रान अपना ऑर्बिट कैसे बनायेंगे तो वे थोड़ी दूरी पर अपना अलग छल्ला बना लेते हैं और इस तरह कई ऑर्बिटिंग लेयर हो जाती हैं, जिन्हें शेल कहते हैं.. लेकिन यह ऑर्बिट सोलर सिस्टम की तरह फ्लैट नहीं होते बल्कि चारों तरफ होते हैं और एक शेल में अधिकतम आठ इलेक्ट्रान होते हैं.. सब शेल मिला कर बत्तीस भी होते हैं।
सबसे हल्का एटम हाइड्रोजन होता है जिसमें एक-एक प्रोटाॅन और इलेक्ट्रान होता है, यह अकेला ऐसा एटम है जिसमें न्युट्रान नहीं होता। एटम में प्रोटान की संख्या के अनुसार उन्हें नम्बर दिये गये हैं और जहाँ सबसे हल्का एटम हाइड्रोजन होता है वहीं सबसे भारी पर विरोधाभास बना हुआ है।

अपनी शुद्ध स्टेट में यह गैस, सब मेटालिक या मेटालिक अवस्था में एलिमेंट्स कहलाते हैं जबकि जब आपसी संयोजन से कुछ बनाते हैं तो उसे सब्सटेंस कहते हैं।
जैसे हाइड्रोजन-ऑक्सीजन मिल के पानी बनाते हैं, हाइड्रोजन, कार्बन और ऑक्सीजन मिल के लकड़ी और ऑक्सीजन, सिलिकान मिल कर ग्लास... इसमें एक चीज यह गौरतलब है कि टेम्प्रेचर और प्रेशर इनकी शक्ल चेंज कर देते हैं जैसे लोहा और निकल धातु है...
लेकिन पृथ्वी के कोर में यह लिक्विड के रूप में मिल जायेंगे.. हाइड्रोजन गैस है लेकिन जूपिटर के कोर पर यह लिक्विड मेटालिक रूप में पहुंच जाती है, नाइट्रोजन गैस है लेकिन प्लूटो पर इसकी चट्टानें और मैदान बने हुए हैं।
यानि ज्यादा डीप डिटेल से परहेज रखते हुए मोटे तौर पर ऐसा समझें कि एट्म्स के विभिन्न संयोजन, वे सब चीजें बनाते हैं जो आप देखते हैं और यह कहीं भी किसी भी रूप में ढल सकते हैं यानि पहाड़ लिक्विड चाकलेट हो सकते हैं, हवा पत्थर बन सकती है और पत्थर हवा भी हो सकता है।
साथ ही एक मोटा फैक्ट इलेक्ट्रो मैग्नेटिज्म को ले कर भी समझिये कि यह वह फोर्स है जो एट्म्स को बांधे रखती है, सोलर सिस्टम और गैलेक्सीज को बांधे रखती है और एटम्स से बना आपका टीवी अगर यूनिवर्स है तो इलेक्ट्रो मैग्नेटिज्म पाॅवर स्प्लाई है...

अगर कहीं वाकई कोई यूनिवर्स मेकर है तो जिस दिन वह अपनी रचना से ऊबेगा, सिर्फ इस सप्लाई को कट करेगा और एक सेकेंड में पूरा यूनिवर्स ऐसे गायब हो जायेगा जैसे कभी था ही नहीं।
Written by Ashfaq Ahmad

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