दूसरे ग्रहों पर हमसे भिन्न किस तरह का जीवन हो सकता है?
काॅस्मोलाॅजी से सम्बंधित बातें लिखने में जो एक सबसे बड़ी परेशानी होती है, वह यह कि इस बारे में ज्यादातर लोगों की समझ बहुत कम होती है और यह विषय इतना जटिल है कि सीधे-सीधे तो चीज़ें समझाई भी नहीं जा सकतीं। अब मसलन इस सवाल को ही ले लीजिये कि क्या पृथ्वी के सिवा भी किसी अन्य ग्रह पर जीवन हो सकता है?
आदमी जब यह सवाल पूछता है तो उसके मन में जीवन की कल्पना ठीक वैसी ही होती है, जैसा जीवन हम पृथ्वी पर देखते हैं... चाहे वह जीव-जंतुओं, पशु पक्षियों के रूप में हो, या इंसानों के रूप में। यह हमारी लिमिटेशन है कि हम देखे, सुने, जाने हुए से बाहर की कल्पना भी नहीं कर पाते, तो हमारे सवाल उन कल्पनाओं से ही जुड़े होते हैं जो हमारे लिये जानी पहचानी ही होती हैं।
मसलन हम किन्हीं दूसरे ग्रह से आये एलियन्स की कल्पना करते हैं तो उन्हें अपनी पृथ्वी से सम्बंधित जीवों के ही अंग दे डालते हैं, चाहे वे किसी एक जानवर से सम्बंधित हों या कई जीवों का मिश्रण। इससे बाहर की चीज़ें हमारी समझ से परे हैं। यह कुछ ऐसा है कि भयानक किस्म की विविधताओं से भरे यूनिवर्स के रचियता के रूप में हम जिन ईश्वरों की कल्पना करते हैं, तो जहां वह साकार रूप में है—
वहां उसके इंसानी रंग रूप में या कई जीवों के मिक्सचर के रूप में इमैजिन करते हैं और जहां निराकार है, वहां भी उसे डिस्क्राईब करने के लिये भी इंसानी बातों का ही सहारा लेते हैं... यहां तक कि इंसान की सारी अनुभूतियां हम उस पर अप्लाई कर देते हैं और वह किसी साधारण मनुष्य की तरह खुश भी होता है, खफा भी होता है, चापलूसी भी पसंद करता है और इंसानों जैसे ही फैसले भी करता है।
एक सेकेंड के लिये सोचिये कि वाकई कोई रचियता है, तो उसका दिमाग़ और उसकी काबिलियत क्या होगी— क्या मामूली ब्रेन कैपेसिटी लेकर आप उसकी सोच के अरीब-करीब भी पहुंच पायेंगे? लेकिन यहां तो एक मामूली अनपढ़ और नर्सरी के आईक्यू लेवल वाला धार्मिक बंदा भी उसे अच्छी तरह समझ लेने का दावा करता है...
सच यह है कि पृथ्वी पर जितने भी ईश्वर पाये जाते हैं, वह इंसानों के अपनी जानी पहचानी कल्पना के हिसाब से खुद उसके बनाये हैं। हकीकत में ऐसा कोई रचियता है या नहीं— मुझे नहीं पता, न पता कर पाने की औकात है मेरी और न ही पता करने में कोई दिलचस्पी। यहां इस बात का अर्थ इतना भर है कि इंसान अपनी जानी पहचानी कल्पनाओं की बाउंड्री ईश्वर तक के मामले में क्रास नहीं कर पाता और यही नियम वह एलियंस पर अप्लाई करता है।
जबकि हमारी जानी पहचानी कल्पनाओं से बाहर जीवन जाने कितने तरह का हो सकता है। जीवन मतलब लिविंग थिंग, बायोलाॅजिकल केमिस्ट्री, एक्टिव ऑर्गेनिजम.. वह एक बैक्टीरिया है तो वह भी जीवन के दायरे में आयेगा। इसके अलग-अलग तमाम ऐसे रूप हो सकते हैं जो हमारे सेंसेज से परे हों। या हम देखें तो देख कर भी न समझ पायें।
वह सिंगल सेल ऑर्गेनिजम भी हो सकता है और हमारी तरह कोई कांपलेक्स ऑर्गेनिजम भी— जिसका ज़ाहिरी रूप हमसे बिलकुल अलग हो। उदाहरणार्थ, "डारकेस्ट ऑवर" नाम की हालिवुड मूवी में एक ऐसे एलियन की कल्पना की गई थी जो इंसानी सेंसेज से परे था और एक तरह की एनर्जी भर था। तो इसी तरह के जीवन भी हो सकते हैं।
जीवन का मतलब इंसान जैसा सुप्रीम क्रीचर ही नहीं होता.. जैसे पृथ्वी पर होता है कि हर तरह की एक्सट्रीम कंडीशन मेें भी किसी न किसी तरह का जीवन पनप जाता है— इसी तर्ज पर हर ग्रह पर उसकी कंडीशन के हिसाब से किसी न किसी तरह का जीवन इवाॅल्व हो सकता है।
जैसे हमारे पड़ोसी शुक्र ग्रह की कंडीशंस इतनी बदतर हैं कि हमारे हिसाब से वहां किसी भी तरह का जीवन पनप नहीं सकता लेकिन वहीं यह संभावना भी है कि किसी रूप में उसी माहौल में सर्वाईव करने लायक कोई सिंगल सेल ऑर्गेनिजम ही पनप जाये। टेक्निकली वह भी जीवन है, भले हमारे लिये उसके कोई मायने न हों।
हमारे सौर परिवार के सबसे सुदूर प्लेनेट प्लेटों पर जाहिरी तौर पर जीवन की कोई गुंजाइश नहीं दिखती, क्योंकि वह सूरज से इतनी दूर है कि वहां तक रोशनी भी ठीक से नहीं पहुंचती। हमारे जाने पहचाने जीवन के (जिसकी भी हम कल्पना करते हैं) वहां पनपने की दूर-दूर तक कोई संभावना नहीं है—
लेकिन फिर भी उसके अंदरूनी गर्म हिस्सों में या उसके उपग्रहों के अंदरूनी हिस्सों में कोई बैक्टीरियल लाईफ मौजूद हो सकती है— यहां तक कि उस प्लेनेट नाईन या एक्स का चक्कर काटते उसके उपग्रहों के अंदरूनी हिस्सों में भी, जो गर्म हो सकते हैं... जिस प्लेनेट को लेकर अब तक कोई पुख्ता सबूत भी हाथ नहीं लगा।
तो जीवन होने को सभी ग्रहों पर किसी न किसी रूप में हो सकता है, बस वह हमारी परिभाषा में फिट नहीं बैठता। यह जीवन हमारे हिसाब से एकदम शुरुआती लेवल वाला सिंगल सेल ऑर्गेनिजम हो सकता है जिसे एक कांपलेक्स ऑर्गेनिजम तक पहुंचने के लिये बड़ा लंबा, पेचीदा और नाजुक सफर तय करना होता है।
हम आज जहां दिखते हैं, वहां तक हमारे पहुंचने में जहां सबसे बड़ा हाथ हमारे ग्रह की सूटेबल पोजीशन है, वहीं तमाम तरह के ऐसे इत्तेफाक भी रहे हैं, जिनमें से एक भी न घटता तो हम न होते। यह करोड़ों मौकों से एक मौके मौके पर बनने वाले इत्तेफाक हैं, लेकिन यूनिवर्स में सोलर सिस्टम भी तो अरबों हैं। तो ऐसे में जहां भी यह स्थितियां बनी होंगी, यह इत्तेफाक घटे होंगे—
वहां हमारे जैसा कांपलेक्स ऑर्गेनिजम वाला जीवन जरूर होगा.. वर्ना सिंगल सेल वाला तो कहीं भी हो सकता है— एक्सट्रीम कंडीशंस वाले ग्रहों पर भी। हां, यह जरूर है कि कहीं हमारी जानी पहचानी कल्पनाओं वाला भी हो सकता है तो कहीं वह भी, जो हम न देख सकें और न ही समझ सकें।
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