गॉड्स एग्जिस्टेंस 2

 


ब्रह्माण्ड बिग रिप से खतम होगा, बिग फ्रीज़ से या बिग क्रंच से

  अब लगभग यह तय समझिये कि यूनिवर्स बिग बैंग से बना— फिर चाहे यह बिग बैंग किसी अलौकिक/वैज्ञानिक शक्ति के किये हुआ हो या स्वतः ही हुआ होपर यह खुद अपने नियम से बंधा है कि जो बना हैउसे नष्ट होना है। इसके नष्ट होने की प्रक्रिया होने को कोई भी हो सकती है लेकिन वैज्ञानिक रूप से इसे ले कर तीन तरह की थ्योरी दी जाती हैं— बिग रिपहीट डैथ/बिग फ्रीज या फिर बिग क्रंच।

  पहले अगर हीट डैथ या बिग फ्रीज की थ्योरी को टटोलें तो यह थर्मोडायनामिक्स के एक लॉ से निकली है जो कहती है कि अरबों खरबों वर्षों में मैटर धीरे-धीरे अपने आपको रेडियेशन में बदल कर खत्म कर देगा।  सभी सितारे अपनी ऊर्जा खो देंगे। ब्रह्मांड एक दिन एकदम ठंडा हो कर अंधकार में डूब जायेगा। इसे गति देने वाली हर ऊर्जा खत्म हो जायेगी और हर चीज ठंडी हो कर स्थिर हो जायेगी।
Existence of God 2
Theory of Big Freeze
  इसके सिवा जो सामने दिखती संभावना है वह है बिग रिप की— इसे यूँ समझिये कि ब्रह्मांड में हर चीज ग्रेविटी से बंधी अपनी जगह पर परिक्रमा कर रही है लेकिन यूनिवर्स में डार्क एनर्जी एक ऐसा बल है जो ग्रेविटी पर हावी हो रहा है और इसकी वजह से ब्रह्मांड  फैल रहा है। गैलेक्सीज एक दूसरे से दूर जा रही हैं और बिग रिप की थ्योरी कहती है कि एक दिन यह इतना फैल जायेगा कि ग्रेविटेशनल फोर्स नाममात्र को रह जायेगी। ब्रह्मांड के सारे ऑब्जेक्ट टूट जायेंगे और ग्रेविटी के न होने से एक दूसरे से दूर होते चले जायेंगे।
  यहाँ तक कि एटम्स तक टूट कर बिखर जायेंगे और उनके सबएटमिक पार्टिकल्स यानि प्रोटानन्यूट्रान और इलेक्ट्रान एक दूसरे से अलग हो जायेंगे। कोई पार्टिकल एक दूसरे से संपर्क नहीं कर पायेगा। इस स्थिति की तुलना आप एक गत्ते के बॉक्स में रखे गुब्बारे से कर सकते हैंजिसके अंदर आप इतनी हवा भर दें कि वह फूल कर फट जाये।

  तीसरी थ्योरी बिग क्रंच की है— जिसके मुताबिक एक दिन इसका फैलाव रुक जायेगा और डार्क एनर्जी के कमजोर पड़ते ही ग्रेविटी पुनः हावी हो जायेगी और सभी गैलेक्सीज एक दूसरे की ओर खिंच कर एक दूसरे से टकराने लगेंगीऔर इसका आकार लगातार सिकुड़ता जायेगा।

  खत्म होने से एक लाख साल पहले तापमान इतना बढ़ जायेगा— जितना कई तारों की सतह का होता है। इस कंडीशन में एटम्स भी टूट कर बिखर जायेंगे और जगह-जगह बन गये ब्लैकहोल्स द्वारा निगल लिये जायेंगे जो अपने आसपास का सारा मैटर निगल रहे होंगे।
Book by ashfaq ahmad

एक दिन सारा मैटर ब्लैक होल में समां जायेगा

  फिर सब मिल कर एक सुपर ब्लैकहोल बन जायेंगेजिसका मास पूरे यूनिवर्स के बराबर होगा और जो अंततः पूरे यूनिवर्स को निगल जायेगा और यूनिवर्स का सारा मैटर क्रश्ड और कंप्रेस्ड हो कर एक प्वाइंट ऑफ सिंगुलैरिटी पर इकट्ठा हो जायेगा। इसके बाद ब्लैकहोल खुद को खत्म कर लेगा और बचेगा तो वही एक बिंदूजो अपने अंदर पूरा ब्रह्मांड समेटे होगा— किसी अगले बिग बैंग के इंतजार में। यानि जहां से चले थे— वहीं पंहुच गये।
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Big Crunch
  अब यहां कुछ बातें अक्सर उठाई जाती हैं— मसलन थर्मोडायनामिक्स के एक नियम के मुताबिक किसी नयी वस्तु का निर्माण पहले से मौजूद किसी चीज से ही हो सकता है— यानि भले यह यूनिवर्स के बनने और नष्ट होने की प्रक्रिया पहले भी दोहराई जा चुकी हो लेकिन जो पहला यूनिवर्स बनाउसके लिये मटेरियल कहां से आयाजब कुछ भी नहीं था ईश्वर कहां थाजब ब्रह्मांड एक बिंदू में सिमटा हुआ था और स्पेस ही नहीं थातब उसके फैलने के लिये आखिर जगह कहां थी?

  इसे गत्ते के बक्से में मौजूद गुब्बारे वाले उदाहरण से समझिये— आपकी कल्पनाशक्ति असल में आपको गुब्बारे के अंदर की स्थिति के हिसाब से ही सोचने पर मजबूर करती है। आप ईश्वर या उससे संबंधित कोई भी सवाल सोचते हैं तो इस गुब्बारे के अंदर ही रह कर सोचते हैं और आपके द्वारा सोचे जवाब क्रैश कर जाते हैं लेकिन अगर उन सवालों के जवाब बाहर निकल कर तलाशें तो?

  इन उपरोक्त तीनों सवालों के जवाब पाने के लिये अपनी सोच को इस ब्रह्मांड रूपी गुब्बारे के बाहर आपको लाना ही होगा। इस ब्रह्मांड के आसपास स्पेस बाक्स के रूप में हमेशा से था— चाहे यह गुब्बारा सिकुड़ कर बस एक इंच बचे या फिर फूल कर पूरे बाक्स भर में फैल जाये। हां वह बाक्स इस गुब्बारे की लिमिट है— इसके अंतिम सिरे तक पंहुचते ही यह एक्सपैंड हो कर फट जायेगा— यानि बिग रिप के रूप में टर्मिनेट हो जायेगा।
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क्या यूनिवर्स हाइपरस्पेस में तैरता हुआ बबल है

  स्टिंग थ्योरी भी यही कहती है कि हमारा यह यूनिवर्स एक बबल में और दूसरे बबल्स के साथ हाइपरस्पेस में तैर रहा है— इस बबल को आप एक गुब्बारा और हाइपरस्पेस के इस हिस्से को एक गत्ते का बॉक्स समझ सकते हैं। अब तक हासिल ज्ञान के हिसाब से यह यूनीवर्स इतना बड़ा हमें महसूस होता है कि हम इसके बाहर के बारे में सोच ही नहीं सकते लेकिन थोड़ा ठहर कर बैक्टीरिया की दुनिया के अकार्डिंग खुद का और खुद की दुनिया का साइज शेप नापिये तो बात समझ में आ जायेगी कि यह ब्रह्मांड हमारे लिये जितना बड़ा हैइससे बाहर रहने वाले जीवों के लिये इतना बड़ा शायद न हो।
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Universe in Hyperspace
  हमारे हिसाब से एग्जिस्ट करने वाला स्पेसटाईममैटर और लाईफ सबकुछ भले बिग क्रंच और बिग बैंग के बीच एग्जिस्ट करता हो— लेकिन अगर कोई इस गुब्बारे को फुलाने वाला इस बॉक्स के बाहर है तो हमारे हिसाब से वह 'हमेशा से हैही कहा जायेगा।

  इस बबल या यूनिवर्स के अंदर जो भी हैवह स्पेसटाईम और मैटर के प्रभाव से बच नहीं सकता लेकिन जो इस बबल से बाहर हैवह निश्चित तौर पर इस प्रभाव से मुक्त होगा। अब अगर इस बाहरी शक्ति को हम मान्यता देते हैं तो इस तीसरे सवाल का जवाब भी सामने आ जाता है कि यह 'मटेरियलपहली बार कहां से आया।
  हालाँकि इन संभावनाओं को मान्यता देते ही सवालों की सीरीज खड़ी हो जाती है कि इस बाक्स में रखने के लिये मटेरियल भले बाहर से आयालेकिन बाहर भी इस तरह के मटेरियल कहां से आयेअगर इस बाक्स में इस मटेरियल को रखने वाला पहले से एग्जिस्ट करता है तो फिर उसे किसने बनाया और जिसने उसे बनायाफिर उसे किसने बनायाहमारे यूनिवर्स की एक सीमा हैबॉक्स रूपी— तो उसकी भी कोई सीमा होगी और जिस बॉक्स में उसकी दुनिया होगीउसके बाहर आखिर क्या होगा?

  इस तरह सवालों के जवाब ढूंढना असंभव हो जायेगा। इसलिये हम इसे अपने से एक स्टेप आगे तक के जवाब तक सीमित रखेंवही बेहतर है— उससे आगे के सवालों से उस दुनिया के लोग भी शायद इसी तरह जूझ रहे होंगे।
  अब अगर इस हिसाब से सोचना शुरू करें और इन सवालों के जवाब ढूंढने की कोशिश करें तो एक 'सपोजके रूप में मान लेते हैं कि यह सब ईश्वर की क्रियेशन है और सबकुछ किसी सर्वशक्तिमान ईश्वर ने बनाया है तो आगे कुछ सवाल और खड़े होते हैं— जिसमें 'वह खुद कहां से आया या उसे किसने बनायासे अगर किनारा कर भी लें तो एक चीज तो हमें फिर भी सोचनी पड़ेगी कि उसने यह सब बनाया तो क्यों बनाया?
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Written by Ashfaq Ahmad

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