गॉड्स एग्जिस्टेंस
अगर ईश्वर है तो विज्ञान के नज़रिये से कैसा हो सकता है
इस सृष्टि को चलाने वाले किसी ईश्वर के होने न होने पर हमने काफी चर्चा की है— चलिये धार्मिकों के नज़रिये से इस संभावना पर भी विचार करते हैं कि वह वाकई है, और अगर है तो कहां हो सकता है और कैसा हो सकता है।
इसे समझने के लिये थोड़ा डीप में जाना पड़ेगा— आप सीधे किसी आस्तिक वाले कांसेप्ट को पकड़ कर ईश्वर को नहीं समझ सकते। वे तो हर सवाल का दरवाजा बस 'मान लो' पर बंद किये बैठे हैं— अपनी बात को प्रमाणित करने के लिये उनके पास कोई तर्क नहीं होता। यह सही है कि कोई ईश्वर है या नहीं, यह प्रमाणित नहीं किया जा सकता लेकिन अगर विज्ञान की तरह कोई थ्योरी ऐसी सामने रखी जाये जो थोड़ी व्यवहारिक हो तो एक संभावना तो बनती ही है।
आस्तिक और नास्तिक के बीच ईश्वर के अस्तित्व के बाद दूसरा जो विवाद है वह बिग बैंग थ्योरी है। किसी आस्तिक के हिसाब से यह ब्रह्मांड खुदा की इच्छा पर वजूद में आया है और 'कुन फयाकुन' के अंदाज में आया है जबकि विज्ञान के हिसाब से ब्रह्मांड का निर्माण बिग बैंग के जरिये हुआ है।
बिगबैंग क्या सचमुच हुआ था
यानि करीब चौदह अरब वर्ष पहले सबकुछ एक बिंदू के रूप में बंद था जिसमें विस्फोट हुआ और स्पेस, टाईम और मैटर के रूप में यह यूनिवर्स अस्तित्व में आया। अब जिस वक्त की यह घटना है, उस वक्त तो न कोई इंसान मौजूद था और न उस वक्त का कोई रिकार्ड उपलब्ध है— फिर यह चुटकुले जैसा सच आखिर किस आधार पर एक थ्योरी मान लिया जाता है?
इस थयोरी के कई प्वाइंट्स ऐसे हैं जो बस कल्पना भर हैं लेकिन कई प्वाइंट्स ऐसे हैं जो प्रैक्टिकल में सच साबित हुए हैं— जिनमें सबसे महत्वपूर्ण प्वांट यह है कि एक समय यह ब्रह्मांड बेहद छोटा और गर्म था जो बाद में धीरे-धीरे फैलता गया। इसे साबित करने के लिये एस्ट्रोनॉमिकल ऑब्जर्वेशन, कंप्यूटर सिमूलेशन और लार्ज हेड्रान कोलाइडर एक्सपेरिमेंट का सहारा लिया गया है। इसके सिवा कास्मिक माइक्रोवैव बैकग्राउंड के रूप में इसके सबूत पूरे ब्रह्मांड में जगह-जगह मौजूद हैं।
निर्माण के शुरुआती तीन लाख साल तक यह इतना गर्म था कि इलेक्ट्रान्स और प्रोटान्स मिल कर एक एटम तक नहीं बना पा रहे थे। उस समय यह सारा मैटर हाईली आयोनाइज्ड प्लाज्मा के रूप में मौजूद था। इस प्लाज्मा से यूँ तो लाईट उस वक्त भी निकल रही थी लेकिन न्यूट्रल एटम की मौजूदगी के कारण फ्री इलेक्ट्रान लाईट को रीडायरेक्ट कर दे रहे थे— जिसके कारण वह ज्यादा दूर तक यात्रा नहीं कर सकती थी। धीरे-धीरे ब्रह्मांड फैलता गया और इसका तापमान और घनत्व घटता गया। फिर वह समय भी आया जब एटम अस्तित्व में आया। चूँकि न्यूट्रल एटम बनाने के बाद लाईट को रीडायरेक्ट करने के लिये कोई फ्री इलेक्ट्रान्स नहीं बचे थे तो पहली बार यह ब्रह्मांड ट्रांसपैरेंट बना।
एटम बनने से पहले तक जो लाईट गर्म प्लाज्मा से निकलने के कारण ब्रह्मांड के हर कोने में एक साथ इन्फ्रारेड रेडियेशन के रूप में मौजूद थी— अब वह इस ब्रह्मांड में हमेशा ट्रेवल करने के लिये स्वतंत्र हो गयी। यह लाईट एक प्रमाण के तौर पर आज भी ब्रह्मांड में हर जगह मौजूद है। पिछले साढ़े तेरह अरब साल में ब्रह्मांड के फैलने के कारण इस लाईट का वैवलेंथ भी फैलता रहा जिसके कारण अब यह इन्फ्रारेड रेडियेशन तो नहीं रहा— पर इलेक्ट्रो मैग्नेटिक स्पेक्ट्रम के माइक्रोवेव रीजन में इसे आज भी ब्रह्मांड में हर जगह डिटेक्ट किया जा सकता है जिसे हम कास्मिक माइक्रोवैव बैकग्राउंड के रूप में जानते हैं।
जब कोई चीज काफी गर्म हो जाये तो उससे लाईट निकलनी शुरू हो जाती है— जैसे कोयला या तपते लोहे को ही ले लीजिये। गर्म वस्तु से निकलने वाली लाईट एक स्पेसिफिक पैटर्न फॉलो करती है, जिसे ब्लैक बॉडी रेडियेशन कहते हैं। अगर यह ब्रह्मांड शुरुआती दिनों में काफी गर्म था तो इससे भी तपते लोहे की तरह काफी लाईट निकली होगी। बीतते समय के साथ ब्रह्मांड ठंडा जरूर हुआ पर फिर भी हमें ब्लैक बॉडी स्पेक्ट्रम मिलने चाहिये और बिग बैंग थ्योरी के मुताबिक यह वाकई हर जगह पाया भी गया है।
थ्योरेटिकल ब्लैक बॉडी कर्व से मिलान
इसे जांचने के लिये एक थ्योरेटिकल ब्लैक बॉडी कर्व बनाया गया था जो बिग बैंग थ्योरी पर आधारित था, फिर कास्मिक माइक्रोवैव बैकग्राउंड से मिले डेटा से बनाये गये थर्मल स्पेक्ट्रम से इसका मिलान किया गया तो दोनों ग्राफ लगभग समान साबित हुए और इस ग्राफ से जब ब्रह्मांड का तापमान निकाला गया तो वह 2.73 कैल्विन आया और जब वाकई में आज के ब्रह्मांड के तापमान की जांच की गयी तो 2.725 कैल्विन आया जो कि लगभग प्रिडिक्टेड तापमान के आसपास ही था— यहां भी बिग बैंग थ्योरी सही साबित होती है।
ब्रह्मांड में कुछ भी देखने का जरिया वे फोटॉन्स हैं जो ट्रैवल कर रहे हैं और असल में हम उनके जरिये अतीत को देखते हैं। यानि अगर हम एक हजार प्रकाशवर्ष दूर के किसी तारे को देख रहे हैं तो वह इमेज दरअसल एक हजार साल पुरानी है जो प्रकाश के माध्यम से हम तक पहुंची है— इसी तर्ज पर ब्रह्मांड में हम ब्रह्मांड के अतीत को देख सकते हैं।
शुरुआती गर्म दौर के बाद जब ब्रह्मांड ठंडा होना शुरू हुआ और हाइड्रोजन एटम्स बनने शुरु हुए, गर्म प्लाज्मा गैस में तब्दील हुआ तो उस समय में केवल गैस के बादल ही मौजूद थे। बिग बैंग थ्योरी के अनुसार अगर हम ब्रह्मांड के अतीत में देखते हैं तो हमें यह गैस क्लाउड्स दिखने चाहिये और मज़े की बात यह कि आधुनिक टेलिस्कोप की मदद से जब बारह से तेरह अरब साल पहले के ब्रह्मांड को देखा गया तो गैस क्लाउड्स वाकई मिले भी।
डोप्लर शिफ्ट इफेक्ट का एक्सपेरिमेंट
इसके सिवा डोप्लर शिफ्ट इफेक्ट के निष्कर्षों से बिग बैंग थ्योरी के अकार्डिंग यह भी साबित हो गया कि एक समय यह ब्रह्मांड छोटा था, जो बाद में एक्सपैंड हुआ और लगातार आज भी एक्सपैंड हो रहा है।
इसे यूँ समझ सकते हैं कि एक शोर मचाती गाड़ी आपकी तरफ आती है और गुजरती हुई दूर चली जाती है। उसकी आवाज हल्की से तेज होती फिर हल्की होती जाती है। ऐसा साउंडवेव के वेवलेंथ की वजह से होता है, कोई आवाज आपसे दूर जा रही है तो उसकी वेवलेंथ स्ट्रेच हो कर बढ़ती जाती है, और यही वेवलेंथ जितनी कम होती जायेगी, उतनी ही आवाज आपको तेज सुनाई देगी।
ऐसा ही लाईट के साथ भी होता है क्योंकि वह भी एक वेव है— जो जब हमसे दूर जायेगी तब उसकी वेवलेंथ बढ़ने पर उसके किनारे लाल पड़ते दिखेंगे, जबकि स्थिर होने पर ऐसा नहीं होगा। इसी आधार पर दूर होती गैलेक्सीज हमें यह बताती हैं कि यूनीवर्स एक्सपैंड हो रहा है।
कुल मिलाकर बिग बैंग थ्योरी भले सारे सवालों के जवाब न देती हो पर कई सवालों के जवाब तो जरूर देती है और इस संभावना को बल देती है कि इस यूनिवर्स का निर्माण बिग बैंग से हुआ है। अब यह बिग बैंग खुद से हुआ या यूनिवर्स का निर्माण करने के लिये किसी अलौकिक या वैज्ञानिक शक्ति ने किया— यह तय करने की हालत में कोई नहीं है, लेकिन हम चूँकि ईश्वर के होने की संभावना पर विचार कर रहे हैं तो मान लेते हैं कि यह बिग बैंग उसी ने किया।
Written by Ashfaq Ahmad
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