इंसान और पिरामिड
अगर इंसान खत्म हो जाये तो क्या होगा
आज हम इंसान संख्या में इतने हैं कि हमने पृथ्वी के चप्पे-चप्पे को कवर कर रखा है और इतना वैज्ञानिक विकास कर चुके हैं कि जमीन से ले कर अंतरिक्ष तक अपने एग्ज़िस्टेंस के निशान छोड़ रखे हैं लेकिन यूनिवर्स के टाईम स्केल पर क्या यह काफी है? आइये इसे कुछ संभावनाओं के आधार पर परखते हैं।
दो तरह की संभावनाओं की कल्पना कीजिये.. पहली कि किसी अनकंट्रोल्ड वायरस का शिकार हो कर दो तीन साल में सारी इंसानी आबादी खत्म हो जाती है तो आगे क्या होगा। सबसे पहला प्रभाव यह होगा कि मनुष्य के नियंत्रण में चलने वाली सभी चीजें बेलगाम हो जायेंगी, धीरे-धीरे पूरी पृथ्वी से कृत्रिम लाईट गायब हो जायेगी, उसके सोर्स ढह जायेंगे.. इनमें ढह कर पूरी तरह खत्म होने में सबसे ज्यादा समय न्युक्लीअर पाॅवर प्लांट और उसका कचरा लेंगे, लेकिन पचास हजार साल में इस तकनीक की हर पहचान मिट जायेगी।
जो भी जानवर इंसान ने पालतू बनाये थे, वह भूख और शिकारी जानवरों के हाथ मारे जायेंगे और जो गिने चुने बचे रह सके वे इवाॅल्व हो कर अपने जंगली पूर्वजों के रूप में ढल जायेंगे। हमारी पहचान बताने वाली प्लास्टिक भले डीकम्पोज हो कर मिट्टी, पानी बनने में पचास हजार साल ले ले लेकिन वह भी मिट जायेगी। साधारण घर, गलियां, सड़कें सौ सालों में ही पेड़ पौधों के आगे सरेंडर कर के प्रकृति का हिस्सा हो जायेंगे। बड़े आलीशान निर्माण भले तीन सौ साल ले लें लेकिन अंततः वे भी इस परिणति को प्राप्त होंगे। मेटल से सम्बंधित निर्माण भी हजार साल के अंदर प्रकृति का हिस्सा हो जायेंगे और गीजा के पिरामिड जैसे पत्थरों वाले निर्माण भले पचास हजार साल से ज्यादा वक्त ले लें लेकिन एक दिन वे भी अपनी पहचान खो देंगे। सिर्फ एक लाख साल में वह सबकुछ मिट जायेगा जो इस प्लेनेट पर हमारे होने की पहचान है।
इंसान के न रहने से कार्बन उत्सर्जन एकदम बंद हो जायेगा जिसका प्रभाव यह होगा कि देर सवेर बनने वाली स्थितियों से आइस एज शुरू हो जायेगी और वन्य जीवन खत्म होने लगेगा.. अब हमारा नजदीकी रिश्तेदार एप्स चूंकि अक्ल रखता है तो वह हो सकता है कि आग को पैदा करना और साधना सीख ले और बर्फ की दुनिया में सर्वाइव कर सकने वाले जीवों को शिकार कर के खुद को पालना शुरू कर दे और जब लाखों साल बाद यह आईस एज खत्म हो तो वह इवाॅल्व हो कर प्री ह्यूमन की स्टेज तक पहुंच चुका हो और फिर अगले पच्चीस तीस लाख सालों में इंसान बनने तक का सफर तय करे और उस वक्त के इंसान ठीक वही सोचेंगे जो हम सोचते हैं यानि कि हम ही पृथ्वी की पहली इंटेलिजेंट सिविलाइजेशन हैं।
अगर पृथ्वी से जीवन ही खत्म हो जाये तो क्या होगा
जबकि इंसानों के खत्म होने की दूसरी संभावना यह है कि अगर किसी नजदीक के तारे के सुपरनोवा से पैदा कास्मिक वेव पूरी पृथ्वी को जला दे, या कोई एस्टेराईड सीधा धरती से आ टकराये तो उस इम्पैक्ट से पैदा प्रभाव खुश्की के सारे जीवन को खत्म कर देगा। इस थ्रस्ट से जगह-जगह क्रस्ट टूटेगा और ज्वालामुखी भी उबल पड़ेंगे और फिर इस जमीन पर ऐसा कुछ भी नहीं बचेगा जो हमारी पहचान है और अगले एक दो करोड़ साल तक पृथ्वी एक बेजान, बंजर ग्रह बन के रह जायेगी और फिर भी अगर हैबिटेबल जोन में बनी रही तो एक दो करोड़ साल बाद समुद्रों के जरिये एक कांपलेक्स लाईफ इवाॅल्व होगी जो इंटेलिजेंट लाईफ में कनवर्ट होने के बाद यही सोचेगी कि हम इस ग्रह की पहली बुद्धिमान सभ्यता हैं जबकि यह सच नहीं होगा।
यह तब की बात है जब हम इतने आधुनिक हो चुके लेकिन सोचिये कि इंसान अगर दस-बीस हजार साल पहले की अवस्था में होता और उसने सभी जरूरी खोजें कर ली होतीं और फिर कोई वायरस या कोई रेडियेशन टाईप इफेक्ट उस सिविलाइजेशन को 99% खत्म कर देता और बस एक पर्सेंट वह लोग बचते जो कहीं ऐसे दूर दराज के इलाकों में रह रहे होते जो अप्रभावित रहता और फिर आगे उनसे दूसरी नस्लें पनपतीं जो वैज्ञानिक ज्ञान में जीरो होतीं तो दस हजार साल बाद हम यही सोचते कि हम तो आदिमानवों से यहाँ तक पहुंचे हैं, भला अतीत में हमारे ही पूर्वज हमसे ज्यादा चतुर और ज्ञानी कैसे हो सकते थे, यह जरूर किन्हीं एलियन का प्रभाव होगा जबकि यह सच नहीं होता।
पिरामिड ऐसी ही किसी सभ्यता की पहचान हो सकते हैं जिसने वायरलेस इलेक्ट्रिसिटी के उत्पादन के लिये पाॅवर प्लांट के रूप में इन्हें बनाया था और यह सिर्फ मिस्र में नहीं थे बल्कि अमेरिका से ले कर अंटार्कटिक तक में थे जो तब साउथ पोल पर नहीं था.. फिर वह सभ्यता लुप्त हो गयी। पिरामिड के जिन विशाल पत्थरों को ले कर हम सोचते हैं कि वे उस जमाने में बिना क्रेन की मदद कैसे इतने ऊपर ले जाये गये होंगे तो हो सकता है वे सिर्फ मटेरियल ले जाते रहे हों और उन्हें उनकी जगह ही सांचे में बनाया गया हो। इस बात के सबूत भी ढूंढे जा चुके हैं।
क्या इंसान पृथ्वी की पहली सभ्यता है
कहने का मतलब यह कि पृथ्वी की उम्र कितनी भी हो लेकिन जीवन पनपने लायक स्थितियां यहाँ करोड़ों सालों से हैं और हम अपने से पहले यहाँ जीवन के सिर्फ एक साइकल को जानते हैं, डायनासोर काल के रूप में जो लगभग सत्रह करोड़ साल तक रहे.. हकीकत यह है कि उससे पहले भी ढेरों सभ्यतायें रही और मिटी हो सकती हैं और उनके बाद भी। हम इंसान का अतीत ढूँढने पच्चीस लाख साल से पहले नहीं जा सकते जबकि डायनासोर युग को खत्म हुए छः करोड़ साल गुजर गये।
तब पृथ्वी जीवन के लायक नहीं बची थी लेकिन वापस जीवन पनपने लायक स्थितियों के लिये इसने सपोज एक करोड़ साल का भी वक्त लिया था तो भी बीच में साढ़े चार करोड़ साल का बहुत लंबा पीरियड मिसिंग है.. इस पीरियड में भी जाने कितनी सभ्यतायें पनपी और विलुप्त हुई हो सकती हैं। कोई विकास के पैमाने पर वहां तक पहुंची हो सकती है जहां हम दस हजार साल पहले थे तो कोई वहां तक पहुंची हो सकती है जहां हम आज है और कोई वहां तक पहुंची भी हो सकती है जहां हम सौ या हजार साल बाद होंगे।
हमारे पास जमीन में दफन फाॅसिल्स के सिवा यह सब जानने का कोई जरिया भी नहीं लेकिन हर जगह खुदाई तो नहीं की जा सकती और फिर हम एक्टिव ज्योलाॅजी वाले ग्रह पर रहते हैं जहाँ सबकुछ बदलता रहता है। पुरानी जमीन रीसाइक्लिंग के लिये नीचे जाती रहती है और नयी जमीन बनती रहती है। जमीन और समंदर जगह बदलते रहते हैं.. तो इन सबूतों को ढूंढ पाना नामुमकिन की हद तक मुश्किल है।
क्या एलियन भी हमारी ही पिछली सभ्यता थे
और हाँ.. यह बिल्कुल जरूरी नहीं कि सभी सभ्यतायें दिखने में इंसान जैसी ही हों, जैसे कभी छिपकली इवाॅल्व हो कर डायनासोर हो जायेगी तो कभी एप्स इवाॅल्व हो कर इंसान, वैसे ही डाॅल्फिन जो काफी समझदार होती है, वह इवाॅल्व हो कर वैसी हो सकती है जैसी हम एलियन की कल्पना करते हैं या पिरामिड के पास हमें कुछ उकेरे गये चित्र मिले थे। हो सकता है कि वह पिछली एडवांस सभ्यता के वे बचे खुचे लोग सेपियंस के साथ ठीक उसी तरह एग्जिस्ट कर रहे हों जैसे एक ही समय सेपियंस, डेनिसोवा और नियेंडरथल्स एग्जिस्ट कर रहे थे लेकिन आगे उनका वजूद खत्म हो गया हो।
इसकी तुलना इंसानों के खात्मे की पहली संभावना वाले ट्रैक पर कीजिये जहाँ कुछ इत्तेफाकन बचे रह गये इंसान हिमयुग में सर्वाइव करते एप्स के साथ सह अस्तित्व स्थापित करते हैं, उन्हें आग, शिकार, सुरक्षित निर्माण का ज्ञान देते हैं और कुछ पीढ़ियों के बाद खत्म हो जाते हैं और आगे दो तीन लाख साल बाद इवाॅल्व हुई उन्हीं एप्स की आधुनिक पीढ़ियां सोचती हैं कि सर्वाइवल से सम्बंधित इतने महत्वपूर्ण सिद्धांत उनके एप्स पुरखों ने हासिल किये थे जबकि हकीकतन उस ज्ञान का सोर्स वर्तमान इंसान होंगे।
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