जीवन/LIFE
पृथ्वी पर जीवन कैसे पनपा
जीवन क्या है.. अब धार्मिक किताबों में तो इसकी फिलाॅस्फिकल व्याख्यायें मिल जायेंगी लेकिन हकीकत में यह आर्गेनिक केमिस्ट्री है, या यूं कह लें कि बायोलोजी में कनवर्ट हुई केमिस्ट्री है। हम जैसा जीवन अपने ग्रह पर देखते हैं, वैसे ही जीवन को ले कर यह सवाल हमारे मन में कौंधते हैं कि क्या यूनिवर्स में कहीं और किसी ग्रह पर जीवन हो सकता है।
इसका कोई प्रमाणित जवाब नहीं है लेकिन यह फिर भी कहा जा सकता है कि यूनिवर्स के अरबों खरबों ग्रहों और उपग्रहों पर जीवन हो सकता है।
इसकी क्या जरूरी शर्तें हैं, वो समझ लें तो जीवन को समझने में आसानी रहेगी, कुछ जीवन के जरूरी बिल्डिंग ब्लाॅक्स हैं मसलन अमीनो एसिड ही ले लीजिये.. यह यूनिवर्स में भरपूर मात्रा में मौजूद हैं जैसे बाकी दूसरे मटेरियल मौजूद हैं।
अब इसे बायोलाजिकल फिगर में ढलने के लिये कुछ अनुकूल स्थितियां चाहिये होती हैं जो अरबों ग्रहों और उपग्रहों पर मौजूद हैं। इसके बाद यह तीन रूपों में ढलता है, खुद को मिली स्थिति के अनुसार.. बैक्टीरियल लाईफ, कांपलेक्स लाईफ और इंटेलिजेंट लाईफ।
बैक्टीरियल लाईफ मतलब सिंगल सेल आर्गेनिजम यानि एक कोशिकीय जीव, जो अरबों ग्रहों-उपग्रहों पर हो सकता है क्योंकि इसके लिये मुख्य रूप से पानी जरूरी है और यह बहुत से पिंडों पर मौजूद है।
मतलब इसे ऐसे समझिये कि यह हमारे सोलर सिस्टम के सबसे सुदूर हिस्से में मौजूद प्लूटो के अंदर मौजूद पानी में भी हो सकता है, शनि और जूपिटर के उपग्रहों पर भी हो सकता है और सबसे अंतिम सीमा पर मौजूद संभावित प्लेनेट नाईन के उपग्रहों पर भी हो सकता है, जो ग्रेविटी की वजह से अपने ग्रह से इंटरेक्शन करते हैं, उनका कोर गर्म रहता है और उस वजह से अंदर मौजूद पानी में भी गर्मी मौजूद रहती है। इस प्रकार के जीवन को सूरज की गर्मी की जरूरत भी नहीं होती।
इसके बाद आता है मल्टी सेल आर्गेनिजम, यानि कांपलेक्स लाईफ, जो दो तरह की हो सकती है, एक मतलब जो प्राॅक्सिमा बी की तरह उन समुद्रों में पनप सकती है जिनमें गर्मी और सूरज की रोशनी की पहुंच रहती है...
वहां ठीक उसी तरह जीवन पनप सकता है जैसे हमारे समुद्र में मिल जायेगा, अलग-अलग ढेरों रूप में और इसका दूसरा पहलू होता है खुश्की का जीवन, जिसे पनपने के लिये स्थिति थोड़ी ज्यादा अनुकूल होनी चाहिये.. मतलब थिक एटमास्फियर, ऑक्सीजन टाईप जरूरी गैसें, मैग्नेटोस्फियर आदि और तब वह जीवन उस रूप में ढल सकता है जो डायनासोर युग में पृथ्वी पर था.. ऐसे बहुत कम ग्रह मिलेंगे पहली श्रेणी के मुकाबले लेकिन होंगे जरूर।
तीसरा चरण है इंटेलिजेंट लाईफ.. यानि किसी ग्रह की वह सबसे बुद्धिमान प्रजाति जिसे सुप्रीम स्पिसीज का दर्जा दिया जा सके जैसे इंसान.. इसका मतलब यह हर्गिज नहीं कि ऐसी दूसरी जगहों पर हमारे जैसे इंसान ही हों। वे अपने एटमास्फियर के सहारे इवाॅल्व हुए किसी भी तरह के जीव हो सकते हैं जैसी हाॅलिवुड वाले कल्पना कर सकते हैं, मेन चीज यह है कि वे दिमाग का इस्तेमाल कर के प्रकृति से इतर खुद भी चीजें बना सकें और विकास के पैमाने पर जीवन को आगे बढ़ा सकें।
और ऐसी इंटेलिजेंट लाईफ रेयर प्लेनेट्स पर ही मिलेगी, जिसे कई ऐसे सुखद इत्तेफाक मिले हों जैसे हम पृथ्वी वासियों को मिले। मतलब इंटेलिजेंट लाईफ, कांपलेक्स लाईफ का ही परिष्कृत रूप है लेकिन इसके इवाॅल्व होने के लिये लाखों साल का सुरक्षित वक्त चाहिये..
जो पता नहीं किसी को मिला या नहीं क्योंकि ऐसे जीवन कई सुखद संयोगों के साथ बहुत नाजुक संतुलन पर टिके होते हैं और इन्हें लंबा पनपने के लिये लगातार अच्छी किस्मत चाहिये होती है, जो अब तक हमारी रही है।
एक सवाल अक्सर हमारे मन में यह भी आता है कि क्या ऐसी इंटेलिजेंट लाईफ, जैसी हम अपने ग्रह पर देखते हैं, यूनिवर्स के किसी और ग्रह पर हो सकती है तो जवाब यह है कि सिंगल सेल लाईफ तो शायद अरबों ग्रहों-उपग्रहों पर हो, मल्टी सेल यानि कांपलेक्स लाईफ भी पूरे यूनिवर्स में शायद कुछ लाख ग्रहों पर हो लेकिन इंटेलिजेंट लाईफ कई तरह के संयोगों पर निर्भर करती है जो अरबों में एक होंगे। यानि जीवन का यह रूप न्यूनतम होगा और जहाँ होगा भी, वहां हमसे काफी भिन्न हो सकता है।
एकदम हमारे जैसा जीवन पनपने के लिये कुछ जो मोटे संयोग दरकार हैं वह निम्नलिखित हैं.. पहले तो ग्रह की कंपोजीशन ऐसी ही होनी चाहिये, मतलब साॅलिड, लिक्विड, गैस के रूप में जो मैटर हम अपने आसपास देखते हैं, वैसा ही मिश्रण वहां पर भी हो।
उस ग्रह का अपने सोलर सिस्टम के हैबिटेबल जोन में होना चाहिये यानि सूरज से इतनी दूर कि सबसे जरूरी चीज पानी तरल रूप में रह सके.. ज्यादा पास होगा तो भाप बन जायेगा और ज्यादा दूर होगा तो बर्फ बन जायेगा, फिर अपने लिये जरूरी तापमान भी हम तभी हासिल कर पायेंगे।
उस ग्रह का साईज भले थोड़ा कम ज्यादा हो लेकिन डेंसिटी ऐसी ही हो कि समान माॅस बन सके जिससे ग्रेविटी उतनी ही हो कि इंटेलिजेंट लाईफ हमारे जैसे रूप में पनप सके। ज्यादा होगी तो वे सुप्रीम क्रीचर्स अलग ढंग से पनपेंगे और कम होगी तो भी अलग ढंग से इवाॅल्व होंगे।
उसके पास पृथ्वी जैसा ही घूमता हुआ लिक्विड आयरनी कोर हो, जो अपने आसपास स्ट्रांग मैग्नेटिक फील्ड बना सके क्योंकि बिना इसके सोलर विंड और कास्मिक रेज के जरिये आने वाला रेडिएशन इस किस्म के जीवन को पनपने ही नहीं देगा।
उस ग्रह के पास एक थिक यानि मोटा वातावरण होना चाहिये जो इतना एटमास्फियरिकप्रेशर बना सके कि पानी सतह पर लिक्विड रूप में टिका रह सके, यह न हुआ तो पानी नहीं रुक सकेगा और फिर कोई भी जीवन पनपने की संभावना नगण्य है।
इस जोन में जो मैटर होता है, उससे पानी खींच कर सूरज स्पेस में उड़ा देता है जिससे इस जोन में जो राॅकी मटेरियल बचता है, उससे टेरेस्ट्रियल प्लेनेट बनते हैं और पानी वाला स्टफ पीछे खिसक जाता है जिससे बाद में आईसी काॅमेट्स, एस्टेराईड आदि बनते हैं.. या गैस जायंट्स।
तो टेक्निकली ऐसे ग्रह की सतह पर पानी किसी बाद में हुए संयोग से ही आता है जैसे जूपिटर ने एस्टेराईड्स और काॅमेट्स की मदद से न सिर्फ पृथ्वी बल्कि पानी ग्रहों पर भी पहुंचाया था.. उस प्लेनेट को भी ऐसे सुखद संयोग से दो चार होने का मौका मिला हो।
उस ग्रह के पास भी हमारे चांद जैसा एक सुपर साईज नेचुरल सेटेलाइट होना चाहिये जो अपनी ग्रेविटी से अपने प्लेनेट के एक्सिस को स्टेबल रख सके, अगर एक्सिस स्टेबल न रहे तो मौसम में बहुत तेजी से परिवर्तन होता रहेगा, मतलब अभी जनवरी चल रही है तो थोड़े ही वक्त में जून आ जायेगा.. कुछ इस टाईप, लेकिन वह उपग्रह भी एक हो न कि दर्जन भर।
उस प्लेनेट का भी अपने अक्ष पर 23 डिग्री समथिंग झुका होना चाहिये जिससे मौसम बन और बदल सकें वर्ना लंबे समय तक एक जैसा रहने वाला मौसम फसलें भी नहीं पनपने देगा और न ही ठीकठाक जीवन को इवाॅल्व होने देगा।
अब अगर कोई प्लेनेट इतने सारे सुखद संयोगों को पा लेता है और लंबे वक्त तक उन तमाम खतरों से सुरक्षित भी रह लेता है जो यूनिवर्स में चारों तरफ बिखरे पड़े हैं, तो वहां जीवन अपने सभी रूपों में पनप तो जायेगा लेकिन उसके बावजूद भी इस बात की कोई गारंटी नहीं कि वहां पनपने वाली इंटेलिजेंट लाईफ एग्जेक्ट हम इंसानों की काॅपी होगी, बल्कि वे दिखने में हमसे काफी अलग भी हो सकते हैं।
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