प्रोग्राम्ड यूनिवर्स 4
आयामी बाध्यता एक बड़ी समस्या है
इस सिलसिले में दूसरी बाधा वह चपटा ग्लास केबिन है जहां द्विआयामी यानि टू डायमेंशनल दुनिया (बैक्टीरिया की) पनप सकती है। दो आयाम यानि आगे पीछे और दायें बायें होना— तीसरा आयाम उनके लिये एग्जिस्ट ही नहीं करता, यानि न वे ऊपर नीचे हो सकते हैं और न ही वे किसी भी तरह इस तीसरे आयाम को समझ पायेंगे, जबकि एक इंसान के तौर पर आप एक थ्री डायमेंशनल दुनिया में रहने वाले त्रिआयामी जीव हैं।
आप उनके सामने अगर जाना चाहें— सिर्फ उंगली का पोर रखिये तो उनकी टू डायमेंशनल दुनिया में वह कहीं से आता नहीं दिखेगा, बल्कि जादू या चमत्कार की तरह उनके सामने एकदम से प्रकट हो जायेगा— और जब आप उंगली हटायेंगे तो उन्हें वह उंगली जाती हुआ नहीं दिखेगी, बल्कि उनके लिये वह एकदम से गायब हो जायेगी, किसी जादू की तरह। या आप उनके सामने खड़े हो जायें तो वह उनके लिये ऐसा होगा कि जैसे उनके सामने अचानक आपके पैर प्रकट हो गये हों और उस स्थिति में भी अपनी टू डायमेंशनल बुद्धि और दृष्टि के चलते वे सिर्फ आपके पैर ही देख पायेंगे— आपका बाकी का धड़ उनके लिये अदृश्य रहेगा।
ठीक यही नियम हम पे लागू होता है— हम एक थ्री डायमेंशनल दुनिया में रहने वाले थ्री डायमेंशनल प्राणी हैं... ऐसे में अगर कोई बहु आयामी जीव (या खुदा रख लें) हमारे सामने आ भी जाये तो पहली चीज तो यह कि हम उसे आता जाता नहीं देख पायेंगे, बल्कि प्रकट होते और गायब होते देखेंगे— (यही धारणा धार्मिक लोगों ने गढ़ रखी है) और दूसरी संभावना यह भी है कि हमारे जाने पहचाने आयाम से बाहर की चीज शायद हम समझ भी न पायें।
Dimensional Universe |
अगर आप को अपनी दुनिया और यूनिवर्स के कांबिनेशन को समझना है तो एक सबसे जरूरी चीज है कि आपको आयामों की समझ होनी चाहिये। अगर उसे समझने में आप फेल हैं तो हो सकता है कि आपकी उलझनें कभी सुलझ ही न पायें।
इंसान त्रिआयामी जीव है
पहला आयाम आगे पीछे होना है तो दूसरा दायें बायें होना और तीसरा आयाम है नीचे ऊपर होना। हम तीन आयामों में रहने वाले थ्री डायमेंशनल स्पिसीज हैं और हम जिस ज्ञात दुनिया में रहते हैं वह भी थ्री डायमेंशनल है। चौथा आयाम कहा गया है टाईम को— जिस पर हमारा कोई अधिकार नहीं।
उसे बस हम घड़ी के कांटों या डिजिट्स में गुजरता हुआ महसूस कर सकते हैं— लेकिन यहां भी पहले आयाम की तरह इसे सीधी रेखा में आगे बढ़ते ही देख सकते हैं, यानि इंसान के पैदा हो कर बूढ़े हो कर मरने तक एकरुखी सफर। हम कभी इस सफर को वापसी में नहीं देख सकते।
Five Dimensional Society |
पांचवां आयाम इसी कल्पना को साकार करता है कि हम इस चौथे आयाम यानि टाईम पर नियंत्रण पा सकें और अतीत/भविष्य में जा कर वक्त को आगे पीछे भी देख सकें और टाईम मशीन की कल्पना इसी अवधारणा पर डिपेंड है कि हम ऐसा कर सकते हैं।
इसी कांसेप्ट पर 'बैक टु द फ्यूचर' 'टर्मिनेटर' जैसी सीरीज बनी है और इस अवधारणा पर पैदा होने वाले पेंच से कई टाईम पैराडॉक्स भी बने हैं— जिनसे इंस्पायर हो कर 'प्रीडेस्टिनेशन' जैसी वह फिल्में बनी हैं जहां एक ही कैरेक्टर ने वक्त के विभिन्न चरणों में जा-जा कर, खुद ने मर्द और औरत के रूप में खुद से ही संसर्ग किया और खुद को पैदा करके अंत में खुद को ही गोली भी मारी।
या फोर्थ डायमेंशन की टेसरेक्ट जैसी जो फिजिकल स्ट्रक्चर रूपी कल्पना 'थोर' या 'इंटरस्टेलर' जैसी फिल्म में की जाती है, जहां वक्त एक शेप में बंधा हुआ है— पांचवे आयाम की थ्योरी के हिसाब से 'इंटरस्टेलर' का नायक कूपर वहां पंहुच कर अपने अतीत में झांक कर अपनी बेटी मर्फ को बाईनरी कोड से 'स्टे' का मैसेज देता है और दूसरे प्रयास में मोर्स कोड में ग्रैविटी का क्वांटम डेटा समझाता है— जिससे ग्रैविटी की इक्वेशन पूरी हो सके।
अतीत में जाने की यह कल्पना उस टाईम मशीन से कहीं बेहतर है जहां ग्रैंड फादर पैराडॉक्स जैसी कई उलझनें पैदा होती हैं।
लेकिन चौथे पांचवे यानि वक्त और उसमें आगे पीछे हो सकने वाले आयाम को लेकर की गयी कल्पना में यह भी हो सकता है कि वह बिलकुल गलत दिशा में हो और इसका अस्तित्व किसी और रूप में हो और इस पर किसी और तरह प्रभावी हुआ जा सकता हो— जो अभी हमारी समझ से बिलकुल ही बाहर हो।
हम अपने आयाम से बाहर की चीज़ नहीं समझ सकते
बहरहाल— इसे थोड़े और बेहतर तरीके से समझिये। आप अपने घर में एक स्टील की प्लेट के ट्रे जैसे खांचे लीजिये और उनमें चींटियां भर कर उसे कवर कर दीजिये— उनमे ऊपर की तरफ ऐसे छेद कर दीजिये जिससे आप आटे/चीनी के रूप में उनका भोजन उन तक पंहुचा सकें।
अब यह समझिये कि यह सारी ट्रे टू डायमेंशनल यानि द्विआयामी दुनिया है और इसे साइज में बड़ा करके आप रेंग कर चलने वाले किसी भी जीव के साथ यह प्रयोग कर सकते हैं क्योंकि रेंगने वाले जीव असल में टू डायमेंशनल ही होते हैं— लेकिन चूँकि वे थ्री डायमेंशनल दुनिया में रहते हैं तो उनकी समझ उसी हिसाब से विकसित होती है कि इसे हमारी तरह ही समझ सकते हैं।
अब सोचिये कि ढेर से सदस्यों वाले घर में ढेर सी टू डायमेंशनल दुनिया हैं लेकिन उनके चारों ओर होते हुए भी आप उनके लिये एग्जिस्ट ही नहीं करते। उनके लिये सिर्फ 'आगे-पीछे' या 'दायें-बायें' होता है— 'ऊपर नीचे' जैसी कोई चीज उनके लिये एग्जिस्ट ही नहीं करती कि वे आपको देख भी सकें।
ऐसे में आप, आप के जिस्म का कोई हिस्सा, आपका उन्हें डाला गया खाना, या कोई भी फेंकी हुई चीज उन्हें 'आती' और 'जाती' नहीं दिखेगी— बल्कि एकदम से उनके सामने प्रकट होती और विलुप्त होती दिखेगी। आप ऊपर से पानी स्प्रे करें— जो ट्रे के तल में बने छिद्रों से निकल जाये तो वह उनके लिये 'चमका और लुप्त हो गया' जैसा चमत्कार होगा न कि वह रियलिटी जो आप देख पा रहे हैं।
हमसे ज्यादा आयाम में रहने वाले भी एग्जिस्ट करते हो सकते हैं
ठीक इसी तर्ज पर कल्पना कीजिये कि हमारे आसपास कोई फाईव डायमेंशनल दुनिया हो और वहां फाईव डायमेंशनल जीव रहते हों। दिखने में वे हो सकता है हमारे जैसे हों— यहाँ यह बिल्कुल भी जरूरी नहीं कि वे टाईप थ्री, फोर या फाईव सिविलाइजेशन हों बल्कि हमारी तरह ही टाईप जीरो सिविलाइजेशन हों तो भी— असल में उनका एग्जिस्टेंस ही हमारे लिये जादू है, ईश्वरीय चमत्कार है, पैरानार्मल एक्टिविटी है... और लगभग हर न समझ में आने वाली हर घटना उसी एग्जिस्टेंस का परिणाम हो सकती है।
एक वैज्ञानिक बुद्धि कह सकती है कि ऐसा नहीं होगा— क्योंकि वह अपने फिजिक्स के नियम उस पर अप्लाई करेगा लेकिन यह क्यों जरूरी है कि हमसे अलग आयाम या यूनिवर्स में रहने वालों के भौतिकी के नियम भी हमारे ही समान हों।
अगर इस यूनिवर्स को लेकर वैज्ञानिक यह सोचते हैं कि सबकुछ अपने आप अस्तित्व में आया है और यूनिवर्स सेल्फमेड है— तो यह बिलकुल हो सकता है लेकिन वे इस एक एडीशनल फैक्ट को स्वीकार करने में पीछे हट जाते हैं कि हम एक थ्री डायमेंशनल प्राणी हैं और थ्री डायमेंशनल दुनिया में रहते हैं और चौथे पांचवे डायमेंशन के बारे में हम जानते तो हैं लेकिन उस पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं है— जबकि हमारे ज्ञान और समझ से परे यूनिवर्स में वे सभ्यतायें भी हो सकती हैं जो फाईव डायमेंशनल दुनिया में रहती हों..
Tesseract |
वे समय में आगे पीछे यात्रा कर सकने में सक्षम हो सकते हों और फोर्थ डायमेंशन असल में टेसरेक्ट की तरह वैसा न हो जैसी उसकी कल्पना की जाती है कि जहां 'वक्त' एक फिजिकल शेप और साइज में मौजूद हो— बल्कि किसी और रूप में हो और उनका हमसे जुड़ा हर एक्ट हमारे लिये ठीक वैसा ही जादू और चमत्कार हो जैसा हम एक द्विआयामी दुनिया में रहने वाली चींटियों के लिये कर सकते हैं।
चौथे पांचवें आयाम पर नियंत्रण के साथ कोई दूसरी सिविलाइजेशन क्या कर सकती है— इससे इतर अगर हम अपनी संभावनाओं पर गौर करें तो एक थ्योरी यह कहती है कि अगर हम सूक्ष्म पार्टिकल्स के बीच मौजूद स्पेस को बढ़ा कर उसके बीच से रास्ता बना सकें तो एक वर्महोल क्रियेट कर सकते हैं जिससे काल और अंतराल की यात्रा कर सकते हैं— लेकिन स्टीफन हॉकिंस समेत ज्यादातर वैज्ञानिकों ने इसे व्यवहारिक नहीं माना।
या वर्महोल से इतर भी वार्प ड्राइव या टाईम मशीन जैसी डिवाईस की कई कल्पनायें की जा चुकी हैं जिनके जरिये टाईम में आगे या पीछे जाया जा सकता है। इसे ले कर दो तरह की कल्पनायें की जा सकती हैं। एक पर बनी हुई 'टर्मिनेटर' सीरीज की फिल्म देख सकते हैं जहां पृथ्वी पर अधिपत्य जमा चुकी मशीनें वर्तमान में अपने खिलाफ लड़ते बागी इंसानों के सरदार जॉन कॉनर को बचपन में ही खत्म कर देने के लिये अतीत में रोबोट भेजती हैं जबकि उसी टाईम में इंसान भी जॉन को बचाने के लिये अतीत में रोबोट भेजते हैं।
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