प्रोग्राम्ड यूनिवर्स फाईनल
पृथ्वी पर इंसान के अवतरण की चार संभावनायें
बहरहाल अब आपके सामने चार संभावनायें हैं— पहली कि इंसानी सभ्यता एडम ईव रूपी दो स्वर्ग से आये प्राणियों से शुरू हुई। दूसरी डार्विन की थ्योरी ऑफ इवॉल्यूशन कि इंसान किसी मानवाकार कपि से इवॉल्व हुआ है। तीसरी एलिस सिल्वर की थ्योरी कि इंसान किसी परग्रही सभ्यता द्वारा किसी और ग्रह से ला कर यहां बसाया गया है और चौथी यह कि किन्हीं एलियंस ने पृथ्वी पर आ कर अपने जींस होमोइरेक्टस के साथ मिक्स करके एक मिक्स नस्ल बनाई और हम असल में आधे मूल पृथ्वीवासी हैं और आधे एलियंस।
इसके सिवा एक थ्योरी 'प्लेनेट ऑफ एप्स' की तर्ज पर मैं दे देता हूं कि असल में हमारे पूर्वज किसी उन्नत सभ्यता से ताल्लुक रखते थे, जो वैसे ही स्पेस में विचरते थे जैसे पृथ्वी के वैज्ञानिक विचरते हैं— और फिर किसी इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तूफान या वर्महोल जैसी मुसीबत में फंस कर काल और अंतराल की यात्रा करते यहां आ फंसे, जहां से वापस लौटने का विकल्प ही न बचा। यहां जीवन के नियम उनके ग्रह से अलग थे जिसे अगली पीढ़ी के बड़े होने तक वे सीख न सके और अपना पुराना ज्ञान लिये हुए चल बसे.. जिससे नई पीढ़ी को जीवन एकदम जीरो से शुरू करना पड़ा।
आप जो चाहें अपनी बुद्धि के अनुसार मान सकते हैं।
One Theory of Evolution |
अब फाईनली आपके पास पृथ्वी पर इंसान के अस्तित्व और ब्रह्मांड के सिस्टम को ले कर कई संभावनायें हैं...
इंसान के अवतरण की एक संभावना दो इंसान, आदम हव्वा से शुरू होना है— यहां एक चीज यह क्लियर कर लीजिये कि आदम हव्वा की संभावना को स्वीकृति देने का मतलब उनके साथ जुड़ी फंतासी को स्वीकृति देना नहीं होता। दूसरी संभावना डार्विन से जुड़ी है कि इंसान पृथ्वी के ही किसी मानवाकार कपि की प्रजाति से इवाल्व हुआ है। तीसरी कि किन्हीं लोगों (एलियंस) ने इंसानों को यहां स्थापित किया— या फिर किन्हीं एलियंस ने अपने जीन्स होमोइरेक्टस में मिक्स करके एक मिश्रित नस्ल बनाई।
आप इस पर सवाल उठा सकते हैं कि अगर ऐसा है तो वे फिर क्यों नहीं आये। तो उसकी एक वजह यह भी हो सकती है, कि वे पहले आते रहे हों और आग से ले कर पहिये या दूसरी महत्वपूर्ण खोजें उन्हीं की देन हों और फिर शायद किसी प्राकृतिक आपदा या आपसी जंग में खुद ही खत्म हो गये हों— लेकिन फिलहाल यह संभावनायें हैं और किसी भी तरह प्रमाणित करना संभव नहीं।
इंसान किसी तरह का एक्सपेरिमेंट भी हो सकता है
इसके सिवा एक संभावना इस बात की भी है कि कोई उन्नत सभ्यता हो किसी ग्रह की, जिसके स्पेस में विचरने वाले कुछ लोगों का ग्रुप किसी इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तूफान या स्वनिर्मित वर्महोल में फंस कर काल और अंतराल की यात्रा करते हुए इस ग्रह पर आ फंसा हो, वापसी का कोई विकल्प ही न हो और यहां जीवन चलाने के नियम बिलकुल जुदा हों और उन्हें यह सब सीखने में कई पीढ़ियां लग गयी हों। उनके पास अपने प्लेनेट का सारा ज्ञान हो, लेकिन चूँकि उसकी तब कोई उपयोगिता ही न हो तो वह अगली पीढ़ियों की स्मृति से भी निकल गया हो और उन्होंने जीरो से सफर शुरू किया हो।
Selfmade or Crated by any Maker |
यह पृथ्वी, यह ब्रह्मांड, यह पूरा सिस्टम सेल्फमेड भी हो सकता है— किसी तरह का कंप्यूटराइज्ड प्रोग्राम भी हो सकता है और यह भी हो सकता है कि जिस हाइपरस्पेस या सुपर यूनिवर्स में यह ऑब्जर्वेबल यूनिवर्स है— वह स्वनिर्मित हो लेकिन वहां वह लोग मौजूद हों जिन्होंने किसी एक्सपेरिमेंट के तहत यह बबल यूनिवर्स बनाये हों। जैसे कोई ऑटोप्रोग्रामिंग वाली कार— जो दिखने में बजाते खुद एक्ट कर रही है, सेल्फमेड प्राकृतिक तत्वों से बनी है लेकिन फिर भी वह इंसान का ही आविष्कार है— जो उस पर पूरी तरह न दिखाई देने वाला कंट्रोल बनाये रखता है।
और इसी तरह ईश्वर है— जैसा मान्यताओं में है, ऐसा हर्गिज नहीं हो सकता, यह तो धर्म के दायरे से बाहर आ कर कोई भी समझ सकता है। बाकी वह 'अगर' है तो क्या हो सकता है। कोई टाईप फोर या टाईप फाईव सिविलाइजेशन— जो हमें कंट्रोल कर रही है, हमसे दूर रह के। कोई फोर-फिफ्थ या हायर डायमेंशन में रहने वाली सोसायटी, जिसके लिये हम ठीक वैसे हैं जैसी हमारे लिये टू डायमेंशनल वर्ल्ड में रहने वाली चींटियां... उनका हर एग्जिस्टेंस हमारे लिये जादू है, चमत्कार है।
या मदर प्लेनेट पर कुछ प्रोग्रामर्स ने किसी एक्सपेरिमेंट के तहत यह यूनिवर्स या हमें बनाया है— जिनके वक्त में हमारे वक्त से बहुत ज्यादा अंतर होगा। मतलब उनके एक दिन में भी हमारे हजार या लाख साल गुजर जायेंगे। या फिर हम एक गूलर टाईप ऑब्जर्वेबल यूनिवर्स में मौजूद प्राणी हैं जैसे हजारों लाखों करोड़ों गूलर उस मदर प्लेनेट पर मौजूद हैं और वहां मौजूद ईश्वर कहे जाने लायक वे प्राणी भी मौजूद हैं, जो भले हमारे कर्मों का लेखा जोखा न रखते हों और हमें मरने के बाद कोई जन्नत दोजख न देने वाले हों— लेकिन यह गूलर के पेड़ लगा कर गूलर को जीवन देने वाले और पेड़ काट कर या गूलर मसल कर जीवन खत्म करने की क्षमता रखने वाले तो वही हैं।
आस्तिक और नास्तिक की वैचारिक जंग
अब आइये पृथ्वी पर रहने वाले इंसानों की वर्तमान सोच की— उनमें लगभग नब्बे प्रतिशत तो सीधे-सीधे दो भागों में बंटे हुए हैं। एक अडिग हैं इस पर कि कोई अल्लाह/भगवान/गॉड है, जिसने पूरी सृष्टि बनाई है— दूसरे अडिग हैं कि कोई ईश्वर नहीं है और सबकुछ सेल्फमेड है। तीसरे वर्ग में बहुत थोड़े लोग हैं जो मेरे जैसी सोच रखते हैं— जो किसी संभावना को अंतिम मान कर अपने सवाल, अपनी खोज का दरवाजा बंद नहीं करते बल्कि सभी संभावनायें खुली रखते हैं। दुनिया के ज्यादातर वैज्ञानिक इसी मत के होते हैं और इसीलिये उनके स्टेटमेंट अक्सर इस तरह के होते हैं कि कभी आस्तिक के मनमाफिक हुआ तो वे फलाँ वैज्ञानिक के आस्तिक होने का ढिंढोरा पीटने लगते है, या नास्तिक के मनमाफिक हुआ तो वे फलाँ वैज्ञानिक के नास्तिक होने का प्रचार करने लगते हैं।
जबकि वे आस्तिक नास्तिक की व्याख्याओं से परे होते हैं— इसे मुझ पर अप्लाई करके समझ सकते है। मैं अगर कहूँ कि ईश्वर हो सकता है तो उसका मतलब वह हर्गिज नहीं कि मैं दुनिया की मान्यताओं में प्रचलित ईश्वर को स्वीकृति दे रहा हूं— बल्कि मैं उन संभावनाओं की ओर इशारा कर रहा हूं जो इस पूरे लेख में व्यक्त की। अगर मैं कहूँ कि नहीं, कोई ईश्वर नहीं है तो मैं उन सारी संभावनाओं को खारिज नहीं कर रहा, बल्कि उस प्रचलित ईश्वर को नकार रहा हूँ— जिसे दुनिया वालों ने गढ़ रखा है। यह मेरे जैसे इस दुनिया से बाहर स्पेस में दिमाग खपाने वाले हर शख्स पर लागू नियम है।
अगर इंटेलिजेंस स्केल पर इन तीनों वर्गों को कैटेगराईज किया जाये तो सबसे पहले पायदान पर आस्तिक आता है— जिसे महाज्ञानी की संज्ञा दी जा सकती है, क्योंकि उसे ज्ञान हासिल करने के लिये रत्ती भर भी मेहनत नहीं करनी पड़ती... पीढ़ी दर पीढ़ी ट्रांसफर होता ज्ञान पैदा होते ही उसे मिल जाता है और कुदरत से संबंधित हर सवाल का रेडीमेड जवाब उन्हें हर तरह की मेहनत से बचा लेता है। इनके उलट नास्तिक व्यक्ति को ज्ञानी कहा जा सकता है— क्योंकि वह ज्ञान को हासिल करने के लिये जूझता है और अपने पुरखों से हासिल रेडीमेड जवाब पर अपने दिमाग के दरवाजे बंद नहीं करता और अपने तौर पर आस्तिक के हर जवाब को तर्क की कसौटी पर परख कर किसी निर्णय पर पंहुचता है। इसके बाद तीसरे पायदान पर हम जैसे अल्पज्ञानी आते हैं जो हमेशा सवालों से जूझते रहते हैं और जिंदगी जानने में गुजर जाती है— कभी दिमाग का दरवाजा बंद ही नहीं हो पाता।
Mystery of Human and Space |
इसे कुछ उदाहरणों से समझिये— आस्तिक भूकम्प का यह कारण जान कर, कि महिलाओं के गुनाह करने या सींग पर पृथ्वी टिकाये गाय जब सींग बदलती है तो भूकम्प आता है— संतुष्ट हो जाता है, जबकि नास्तिक इसकी तह तक जाता है और उसे समझ आ जाता है कि यह एक प्राकृतिक घटना है और वह संतुष्ट हो जाता है लेकिन तीसरी कैटेगरी वाला इन सवालों को पीछे छोड़ पृथ्वी के गर्भ तक पंहुचता है— इनर कोर, मेंटल, क्रस्ट के बारे में जानता है तो उसे टेक्टोनिक प्लेट्स के घर्षण के रूप में भूकंप का कारण भी पता चल जाता है।
आस्तिक बिना मेहनत किये यह ज्ञान हासिल कर लेता है— कि हुजूर साहब ने उंगली से चांद के दो टुकड़े कर दिये, हनुमान जी सूर्य निगल गये, या पृथ्वी समुद्र में डूब गयी तो विष्णु ने वराह अवतार ले कर उसे निकाला... जबकि नास्तिक इस ज्ञान को हासिल करने के लिये मेहनत करता है कि स्पेस में स्पिलिट हो कर कोई पिंड वापस नहीं जुड़ सकता और चांद टूट गया तो पृथ्वी का वातावरण ध्वस्त हो जायेगा। सूर्य पृथ्वी से लाखों गुना बड़ा है तो पृथ्वी पर मौजूद प्राणी कैसे निगल सकता है या समुद्र पृथ्वी पर है तो पृथ्वी समुद्र में कैसे डूब सकती है। जबकि इन दोनों के उलट अल्पज्ञानी खोजी अंतरिक्ष में इस महत्वपूर्ण विषय को छोड़ पता नहीं कहाँ-कहाँ के तारे ग्रह और गैलेक्सी ऑब्जर्व करते रहते हैं।
आस्था सिर्फ एक स्टैंड है
कहने का मतलब यह कि आस्था एक स्टैंड है और इसकी प्रतिक्रिया में उत्पन्न स्टैंड वह है जहां नास्तिक खड़ा होता है। उसका सारा दर्शन आस्तिकों के विरोध पर डिपेंड होता है जिसमें वह कामयाब भी रहता है, क्योंकि आस्था के पांव नहीं होते और वह अक्सर तर्कों के आगे पराजित हो जाती है— जबकि हम जैसे लोगों का दर्शन इन दोनों अवस्थाओं से बाहर होता है। हमारे लिये सिर्फ एक वही संभावना नहीं है जो आस्तिकों के पास है, कि उसे नकार कर अपनी अकेली संभावना स्थापित करके इति सिद्धम कर लें— हमारे लिये ढेरों संभावनायें हैं, जीवन को ले कर, इंसान को ले कर, इस ब्रह्मांड को ले कर।
Everything is depend on ur mind |
हां दोनों तरह के लोग हम जैसे लोगों को अल्पज्ञानी कह सकते हैं क्योंकि उन की तरह हम फाइनली किसी स्टैंड पर नहीं टिके— लेकिन वह इतना जरूरी क्यों है? क्या असर पड़ा जा रहा उसके बगैर हमारे जीवन पे— वह तो दर्शन है। जीवन तो कर्मों से चलना है— अच्छे होंगे तो जीवन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, बुरे होंगे तो नकारात्मक— लेकिन हर हाल में कर्म ही मुख्य हैं और सारा धर्म अधर्म मूल रूप से उसी पर निर्भर है।
Written by Ashfaq Ahmad
Post a Comment