सृष्टि सूत्र 2
कैसे जन्म लेते हैं नये ब्रह्माण्ड?
तो जो पीछे आपने पढ़ा था वह इस हाइपोथेसिस का पहला स्केल था, अब दूसरे स्केल पर चलते हैं.. अभी तक आप उस सुपर यूनिवर्स रूपी ब्राह्मांड के बाहर खड़े हो कर चीजों को देख कर इस माॅडल को समझ रहे थे, अब इसके अंदर उतर कर आगे बढ़िये.. इनमें से किसी भी एक यूनिवर्स के अंदर, उसका ही एक पार्ट बन कर।
यहां आपको लग रहा है कि यही अकेला ब्राह्मांड है.. जिस बिगबैंग से यह बना, वह पहला और अकेला बिगबैंग था और आगे यह बिग फ्रीज या बिग क्रश का शिकार हो कर खत्म हो जायेगा। हकीकत यह हो सकती है कि इस शुरु होने और खत्म होने की लगातार चलती प्रक्रिया में आप कहीं बीच में खड़े हों, जहां पहले भी यह घट चुका हो और अभी आगे भी जाने कितनी बार घटना बाकी हो।
और यह जो कुछ लोग फनी सा सवाल करते हैं कि स्पेस अगर अब फैल रहा है तो जो पहले से मौजूद है, वह क्या है या फिर यह स्पेस फैल कहाँ रहा है.. तो समझो भई, कि स्पेस जगह के रूप में पहले से ही मौजूद है और जो फैल रहा है, यह आपका वाला ब्राह्मांड है जिसका मटेरियल दूर तक छितरा रहा है.. तो उस छितराने वाले मटेरियल के अंदर बैठ कर देखोगे तो यही कहा जायेगा कि स्पेस फैल रहा है। तकनीकी रूप से स्पेस नहीं बल्कि वह यूनिवर्स जिसमें आप हैं, वह फैल रहा है जबकि इसके साथ ही ठीक इसी जगह कोई दूसरा ब्राह्मांड सिकुड़ कर बिग क्रश का शिकार हो कर खत्म भी हो रहा हो सकता है, जो आपके लिये डिटेक्टेबल नहीं।
अब यहां से यह खत्म होने और बनने की प्रक्रिया को अपने ही यूनिवर्स से समझिये.. हम एक कई करोड़ प्रकाशवर्ष में फैले केबीसी वायड में हैं। वायड यूनिवर्स में मौजूद ऐसी खाली जगह को कहते हैं जहां नाम मात्र की गैलेक्सी हों। अब अपने आसपास के स्पेस को देख कर हमें लगता है कि यूनिवर्स में हर जगह इतनी ही दूरी पर गैलेक्सीज होती हैं लेकिन ऐसा नहीं है। हम खुद यूनिवर्स के बंजर हिस्से में हैं जबकि ज्यादातर जगहों पर गैलेक्सीज की घनी मौजूदगी है।
तो चूंकि आपको पता है कि बड़े आकार का कोई तारा जब अपनी सारी हाइड्रोजन फ्यूज करके अपनी ग्रैविटी पर कोलैप्स होता है तो वह ब्लैकहोल बन जाता है। अब कल्पना कीजिये कि गैलेक्सीज की घनी मौजूदगी वाले किसी हिस्से में कोई यूवाई स्कूटी के साईज का तारा खत्म हो कर ब्लैकहोल में बदलता है। एक चीज यह भी समझिये कि ब्लैकहोल मैटर का रीसाइकिल सेंटर होते हैं और आगे फर्स्ट जनरेशन स्टार्स उस मैटर को और प्रोसेस और मोडिफाई करते हैं।
अब हम उस नये बने ब्लैकहोल को देखते हैं जो अपने आसपास मौजूद मैटर को निगलना और ताकतवर होना शुरू कर देगा। गतिशीलता के नियम के चलते, उसके हैवी गुरुत्वाकर्षण की वजह से खुद उसकी गैलेक्सी समेत आसपास की गैलेक्सी तक उसके अंदर समाने लगेंगी और पता चलेगा कि एक मैसिव ब्लैकहोल आसपास की कई सारी गैलेक्सीज तक खा गया।
वैज्ञानिक जो यूनिवर्स के अंत की एक थ्योरी बिग क्रश के रूप में देते हैं, वह भी कुछ यूं ही घटेगी। यह प्रक्रिया हालांकि हमारे टाईम स्केल पर करोड़ों साल में पूरी होगी पर आप मान लीजिये कि अभी आपके सामने ही उसने अपने करोड़ों साल के अस्तित्व के दौरान ढेरों गैलेक्सीज निगल चुकने के बाद अभी एक लास्ट पिंड को निगला है और अपनी सिंगुलैरिटी पर बढ़ते वजन के कारण कोलैप्स हो गया है और एक झटके से उसने अब तक निगला सारा मटेरियल रिलीज कर दिया है।
यह हमारे अपने ऑब्जर्वेबल यूनिवर्स में ही घटने वाला एक नया बिगबैंग है और इसके फेंके छितराये मैटर से एक नये ब्राह्मांड का जन्म हुआ है। वह ब्राह्मांड जो रिलीज होते ही बेतहाशा गर्म था लेकिन जैसे जैसे वह छितराते हुए दूर तक फैलता जा रहा है, वैसे-वैसे यह ठंडा होता जा रहा है और इसका उगला मैटर अब एक शक्ल ले रहा है।
मान लीजिये कि वह शक्ल आपकी जानी पहचानी शक्ल से अलग है तो आपके सारे फिजिक्स के नियम उस नये बनते ब्राह्मांड में धराशाई हो जायेंगे और हो सकता है कि उस यूनिवर्स की तमाम चीजें आपके सेंसेज से ही परे हों.. यानि न आप उन्हें देख पायें और न समझ पायें। या हो सकता है कि वह नया ब्राह्मांड ठीक डार्क मैटर और डार्क एनर्जी की तरह आपके लिये सिरे से अनडिटेक्टेबल हो और आप बस उसके प्रभाव को ही महसूस कर पायें। वेल.. यूनिवर्स के सुदूर हिस्सों में इस तरह की प्रक्रियाएँ आलरेडी चल रही हैं।
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