आस्था बनाम तर्क 3
हर नये काल की खोजें पिछले सवालों को हल करती रही हैं
हजार साल में बहुत सी खोजें हुईं है और प्रकृति से जुड़े हजारों रहस्य सुलझाये गये हैं— कल्पना कीजिये चौदह सौ साल पहले के वक्त की। किसी जिज्ञासू ने पूछा होगा कि यह जलजले क्यों आते हैं और किसी मोअतबर हस्ती ने बताया होगा कि जिस जमीन पर औरतें गुनाहों में मुलव्विस हो जाती हैं वहां खुदा जलजले नाजिल करता है। आज भी कोई मौलाना कहता मिल जायेगा कि महिलाओं के जींस पहनने से भूकंप आते हैं।
Faith versus Logic |
भूकंप के कारण की ही तरह लोगों के पास यह भी सवाल होता था कि एक जोड़े के एक जैसा सेक्स करने से लड़का या लड़की के रूप में अलग बच्चे कैसे पैदा हो जाते हैं, तब किसी ने इसे खुदा की मसलहत मान कर सब्र कर लिया और कोई इसका कारण खोजने में लग गया और क्रोमोजोम्स तक पंहुचा।
अब लोगों ने अलग सवाल पकड़ लिया कि एक ही तापमान, एक जैसी कंडीशन में लोग नर मादा के रूप में पैदा हो रहे हैं यह कैसे तय हो पा रहा है— कल को इसका कोई जवाब खोज लिया जायेगा तो वह देखने के लिये यह लोग न होंगे, पर उन्हीं के पोते पड़पोते फिर एक सवाल लिये खड़े होंगे कि ऐसा है तो क्यों है— अंडे की जर्दी पीली क्यों, मजंटा क्यों नहीं। दुनिया में जितनी भी खोजें हुई हैं, आविष्कार हुए हैं— जिन भौतिक चीजों का उपयोग लोग करते नहीं अघाते, जिन संसाधनों से दुनिया बेहतर हुई है, वो सब उन सवालों से जूझने वालों की ही मेहरबानी है न कि उनकी, जो हर सवाल का जवाब बस ईश्वर की इच्छा के रूप में परिभाषित करते आये हैं।
तो हज़रत, सवालों का सिलसिला तो कभी खत्म न होगा मगर यह देखिये कि हमारे जैसे लोग उन सवालों से जूझते तो हैं, उनकी खोज तो करते हैं... बाकी धार्मिक लोग तो हर उलझे सवाल के जवाब में सब खुदा की मर्जी, प्रभु की इच्छा कह कर अपनी अक्ल का दरवाजा ही बंद कर लेते हैं।
एक नहीं— अनेक सवाल थे अतीत में जिनके जवाब ईश्वर की शरण में समाप्त होते थे, लेकिन उनके जवाब ढूंढे गये, आज भी जो सवाल हैं, कल इनके भी जवाब ढूंढे जायेंगे— तब वह ‘ईश्वरं शरणं गच्छामि’ वाले नये सवाल ले आयेंगे। सवाल पूछने वालों को सवाल पूछते वक्त यह ध्यान जरूर रखना चाहिये कि उनके लॉजिकल जवाब खुद उनके पास होना चाहिये... यह खुदा ईश्वर की ढाल ले कर सवाल पर दरवाजे बंद कर लेना अक्लमंदी नहीं।
आस्तिक नास्तिक या एग्नोस्टिक
हालाँकि मेरे हिसाब से नास्तिक जैसा कुछ नहीं होता, कोई किसी ऐसी अंजानी ताकत में आस्था रखता है जो पूरे यूनिवर्स का निर्माता है तो कोई सर्वशक्तिमान प्रकृति में आस्था रखता है— फर्क यह है कि वह धार्मिकों के हिसाब से स्थापित धार्मिक रीति रिवाजों को नकारता है, किताबी ढकोसलों से खुद को दूर रखता है तो धार्मिकों के हिसाब से वह नास्तिक हो जाता है और वाजिबुल लानत और कभी-कभी वाजिबुल कत्ल भी हो जाता है।
खैर, जहां तक मेरा सवाल है तो मुझे एग्नोस्टिक कहा जा सकता है, और मेरा सोचना यह है कि अगर किसी चीज का सृजन हुआ है तो कोई सृजक भी होना चाहिये। सबकुछ अपने आप बनने वाली थ्योरी मुझे अजीब लगती है। कभी गौर कीजिये संपूर्ण यूनिवर्स में के एक छोटे से हिस्से पर— अपने सौरमंडल पर। कैसे आठ ग्रह, एक निश्चित दूरी पर, एक निश्चित क्रम में और एक निश्चित गति के साथ परिक्रमा करते अपनी धुरी पर अरबों वर्ष से घूम रहे हैं। क्या यह अपने आप हो सकता है... हो भी सकता है और नहीं भी, हम एक निश्चित मत कैसे दे सकते हैं? होने को तो यह भी हो सकता है कि यह कोई कंप्यूटराईज्ड सिस्टम हो और अगर यह एक कंप्यूटराईज्ड सिस्टम है और कोई तो होगा, इस यूनिवर्स से बाहर... जिसने इस पूरे सिस्टम को डिजाईन किया होगा।
भले अपने सीमित ज्ञान और सीमित बुद्धि के चलते हमारे लिये ब्रह्मांड की सीमायें अंतहीन हों लेकिन टेक्निकली यह संभव नहीं कि सीमायें न हों। तो उन सीमाओं के पार भी तो कोई होगा, जिसने इस यूनिवर्स को क्रियेट किया होगा— जब तक हमारे पास कोई निश्चित जवाब नहीं, यहाँ पे दिल बहलाने के लिये लोग यह भी मान सकते हैं कि बस वही ईश्वर है।
मेरी नजर में फिर वह कोई प्रोग्रामर या वैज्ञानिक (इंसान जैसा हर्गिज नहीं, बल्कि किसी भी ऐसे रूप में, जो हमारी कल्पनाओं से भी परे हो) या एक से ज्यादा प्रोग्रामर्स या वैज्ञानिकों की टीम होगी लेकिन उसी ताकत को हमने खुदा या ईश्वर के रूप में किसी मामूली बादशाह, सनकी राजा, सख्त प्रशासक या जादूगर जैसी प्रचलित मान्यता दे रखी है जो अतीत में ढेरों चमत्कार करता था (कभी-कभी आजकल भी कर देता है), किसी कंपनी ओनर की तरह अपने अकाउंटेंट की टीम से सबके कर्म लिखवाता रहता है और फिर उनके हिसाब से प्रमोशन (जन्नत) या डिमोशन (दोजख) देगा। मुझे नहीं लगता कि हम माइक्रो बैक्टीरिया से भी गये गुजरे (ब्रह्मांड की व्यापकता के अकार्डिंग) जीवों के लिये वह इतनी माथापच्ची करेगा, जबकि यूनिवर्स के खरबों ग्रहों में से करोड़ों पर जीवन इसी तरह वजूद में हो सकता है।
बहरहाल, खुदा या ईश्वर की जो अवधारणा धार्मिकों ने बना रखी है— उसी हिसाब से चलें तो धार्मिकों के ईश्वर/खुदा और कहें तो किसी रियल खुदा (अगर कोई है तो) ईश्वर/खुदा में सबसे बड़ा फर्क यह है कि उनका खुदा बस उनका (बतौर अल्लाह मुसलमान का, बतौर भगवान/ईश्वर हिंदू का या बतौर गॉड इसाइयों का) ही है, बाकियों के लिये वह पराया है, उन्हें मोक्ष नहीं देगा, स्वर्ग नहीं देगा और अंततः सजा ही देगा।
जबकि दूसरे नज़रिये से जो खुदा हो सकता है— वह फिर सभी का (सभी धर्मों से जुड़े आस्तिकों, नास्तिकों) का खुदा है, सभी को उसी ने पैदा किया है और किसी के लिये पराया नहीं है और अगर वाकई कोई इंसाफ का दिन आयेगा तो सबके साथ बराबर का इंसाफ करेगा।
और यह भी तय है कि वह किताबों में नहीं है, वह इन पूजा पद्धतियों (पूजा/नमाज/प्रेयर) में भी नहीं है, वह अपने नाम पे बनाये घरों (मंदिरों/मस्जिदों/चर्चों) में भी नहीं है— वह इंसान में है, इंसानियत में है, सच, हक, इंसाफ और अमन में है।
ईश्वर की अवधारणा से जुड़ी कई उलझनें हैं
Faith versus Logic |
अब आइये कुछ ऐसी बातों पर जिन्होंने मुझे बचपन से ही उलझा रखा है… अपने कल्चर में रहते हुए बचपन से कई बातें ऐसी सुनते आये हैं जिनसे कभी सामंजस्य ही न बिठा पाये। आज भी इधर-उधर लोगों की बातों में वह बातें दिखती हैं तो पुरानी टीस उभर आती हैं— चलिये आप भी इस बहाने मुलाहिजा फरमाइये।
● खुदा ने सबकुछ यानि बंदे की तकदीर पहले से लिख रखी है—
अच्छा ऐसा है तो गब्बर सिंह— ठाकुर के हाथ काटने या ठाकुर साहब के परिवार को कत्ल करने का दोषी क्यों? वह तो तो अमजद खान नाम का अभिनेता सलीम जावेद द्वारा लिखित एक किरदार भर प्ले कर रहा था। गब्बर के रूप में दोषी था तो वीरू और ठाकुर के हाथों सजा पा गया। अब फिल्म पूरी होने के बाद 'अमजद खान' का हिसाब-किताब क्यों? उसके लिये जन्नत दोजख क्यों? फिल्म का उदाहरण इसलिये कि हम इंसानी जिंदगी को भी उसी के सदृश्य रख सकते हैं।
अक्सर इसका जवाब कुछ विद्वान यह देते हैं कि बंदा कुकर्म इसलिये नहीं करता कि खुदा ने पहले से लिख रखा है— बल्कि करता अपनी मर्जी से ही है और उसके किये अमाल का जिम्मेदार खुद होता है लेकिन चूँकि खुदा को 'गैब' से यह सब बातें पहले से पता हैं, इसलिये उसने पहले ही सबकुछ लिख दिया। यह कुछ ऐसा है जैसे कोई इंसान भविष्य में जा कर सब देख आये और वापस आ कर लिख दे। यकीनन इस थ्योरी से हर बात/कर्म/घटना ठीक इसी तरह एडजस्ट की जा सकती है कि इंसान खाली दीवार पर कहीं भी पत्थर मारे और फिर जहां पत्थर लगे— उस जगह को सेंट्रलाईज करके गोल घेरा खींच कर दुनिया को बताये कि देखो मैंने कितना सटीक निशाना लगाया।
● इंसान की मौत और पैदाइश खुदा तय करता है—
अब अगर आप सीधे हाथ से कान पकड़ेंगे कि जब ठाकुर के बेटों की किस्मत में गब्बर द्वारा मरना लिखा था तो भला गब्बर दोषी कैसे हुआ? या 'लावारिस' के अमिताभ जिस तरह अमजद खान और राखी के अवैध रिश्ते से पैदा हुए तो व्याभिचार का दोष अमजद खान पर कैसे आयेगा? तो हो सकता है सामने वाला घुमा कर कान पकड़ाये कि खुदा को पता था इसलिये उसने इस चीज को लिख दिया लेकिन कर्म का जिम्मेदार तो गब्बर उर्फ अमजद ही हुआ— लेकिन ध्यान रहे कि यहाँ खुदा द्वारा जन्म/मृत्यु 'तय करने' वाली थ्योरी गलत हो जायेगी... या फिर यह मान लें कि अवैध सम्बंध से उत्पन्न संतान और और किसी के हाथों हुआ कत्ल दोनों खुदा की मर्जी थी और इसके लिये जिम्मेदार व्यक्ति को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
● शबे कद्र की रात खुदा लोगों की रिज़्क लिखता है—
फिर तो चोर की रिज्क भी लिखता है— लुटेरे, स्मगलर, भ्रष्टाचारी, प्रास्टीच्यूट की रिज्क भी लिखता है... फिर वे अपने कर्मों के दोषी कैसे हुए? यहां अगर इस थ्योरी को फिट करेंगे कि खुदा को गैब से सबकुछ पता है और उस आधार पर उसने सब लिख रखा तो यह भी मानना पड़ेगा कि चोर के लिये चोरी से रिज्क कमाने का फैसला भी उसी का था और चूँकि उसे पहले से यह पता था कि ऐसा होगा तो उसने लिख दिया— लेकिन उस हाल में भी रिज्क लिखने का दोष तो उसी पर आया। इसके सिवा जो दुनिया भर में लाखों लोग भुखमरी का शिकार हो कर मरते हैं, फिर तो उनके मरने का दोष भी उसी पर आयेगा की उसने उन मरने वालों की किस्मत में खाना क्यों न लिखा?
● इंसान के दोनों कंधों पर दो फरिश्ते बैठते हैं, जो उसके अच्छे बुरे अमाल लिखते हैं—
जब खुदा को सबकुछ गैब द्वारा पहले से ही पता है और उसने उस हिसाब से ए टु जेड चीजें लिख रखी हैं तो कंधे पर बैठे यह दोनों अकाउंटेंट किस बात की जिम्मेदारी निभा रहे हैं— क्या इसमें कोई शक शुब्हा है कि जो खुदा ने लिख रखा है, उसमें फेरबदल हो सकती है या फिर फरिश्तों की ईमानदारी चेक करने की कवायद है कि दोनों खाते बाद में टेली करके दोषी पाये जाने वाले फरिश्तों पर भी दंडात्मक कार्रवाई होगी।
Written by Ashfaq Ahmad
Post a Comment