वीनस/शुक्र ग्रह

 


शुक्र ग्रह क्या है  

हमारे सोलर सिस्टम में आठ ग्रह हैं लेकिन बाकी सोलर सिस्टम के फार्मेशन के हिसाब से वैज्ञानिकों को लगता है कि हमारे पास एक ग्रह और होना चाहिये जिसे वे मिसिंग प्लेनेट, सुपर अर्थ या प्लेनेट नाईन वगैरह कहते हैं और जिसकी लोकेशन नेप्चून के पीछे अंधेरे बर्फीले भाग में मानते हैं जिसे सूरज की रोशनी में देखा नहीं जा सकता.. इसलिये इसे मेन डिस्कोर्स से बाहर रखा जाता है।
आठ में जो सूरज के सबसे पास है वह मर्करी या बुध है, जो बहुत छोटा है.. बेहद पतला वायुमंडल है और बहुत वीक मैग्नेटिक फील्ड है जिससे सोलर रेडिएशन सीधा सतह तक पहुंचता है। इसके अपने एक्सिस पर घूमने की गति बेहद स्लो है और इसके लगभग पौने दो साल में एक दिन हो पाता है, जिससे एक हिस्से में लंबे वक्त तक काफी गर्मी जबकि दूसरे में काफी सर्दी रहती है।

वैज्ञानिकों की दिलचस्पी वीनस यानि शुक्र ग्रह में ज्यादा रहती है। यह पृथ्वी का जुड़वां भाई था, मतलब इसका सबकुछ पृथ्वी जैसा था और इस पर भी नदियां समंदर हुआ करते थे। वैज्ञानिक इसके वर्तमान में पृथ्वी का फ्यूचर तलाशते हैं।

पृथ्वी और वीनस ने अतीत में दो दूसरे प्लेनेट्स की टक्कर झेली थी जिसमें पृथ्वी तो उस टक्कर से संवर गयी जबकि वीनस बर्बाद हो गया। पृथ्वी से टक्कर इसकी रोटेशन की दिशा के अनुरूप हुई थी जबकि वीनस की उलट और इस वजह से वीनस थम कर उल्टी दिशा में घूम गया।
यह सोलर सिस्टम का अकेला ऐसा ग्रह है जहां पश्चिम से सूरज निकलता है लेकिन इसका एक दिन हमारे हिसाब से 243 दिन का होता है जबकि यह अपना साल 225 दिन में पूरा कर लेता है।
उस प्लेनेटरी टक्कर से इसके दो बड़े नुकसान हुए, एक तो इसकी मैग्नेटिक फील्ड खत्म हो गयी, जिससे यह सूरज की रेडियेशन की चपेट में आ गया और दूसरे इस टक्कर से इसका मैग्मा जगह-जगह उबल पड़ा और पूरा वातावरण कार्बन डाई ऑक्साइड से भर गया।
समुद्र इवैपरेट हो कर वायुमंडल में पहुंच गये और चूंकि मैग्नेटिक फील्ड नहीं बची थी तो सूरज की गर्मी ने सारा पानी स्पेस में उड़ा दिया। वातावरण में शुद्ध कार्बन गैस बचीं जिससे सूरज की गर्मी अंदर जा कर बाहर नहीं निकल सकती थी।
ऐसा होने की एक तीसरी वजह थी कि उस टक्कर के दौर में यह भले हैबिटेबल जोन में रहा होगा लेकिन सूरज की पाॅवर लगातार बढ़ने से यह उसकी चपेट में आ गया।

फिलहाल कंडीशन यह है कि इसका सर्फेस टेम्प्रेचर 900 डिग्री के पार है और ढाई सौ किमी मोटे कार्बनिक वायुमंडल की वजह से एटमास्फियरिक प्रेशर इतना ज्यादा है कि अगर आप इसकी सतह पर खड़े हो जायें तो यह आपको वैसे ही कुचल डालेगा जैसे आपके ऊपर कोई वजनी कार लाद दी गयी हो। इसे आम वैज्ञानिक भाषा में हेल यानि नर्क कहते हैं और यही हम पृथ्वी वासियों का फ्यूचर है।
एक अनुमान के मुताबिक हर सौ करोड़ साल में सूरज करीब दस प्रतिशत और स्ट्रांग हो रहा है, तो अब से एक करोड़ साल बाद पृथ्वी वीनस की तरह ही इसकी जद में आ जायेगी और तब सारा पानी वाष्पीकृत हो कर उड़ जायेगा लेकिन चूंकि इसकी मैग्नेटिक फील्ड जिंदा होगी तो वह उस पानी को स्पेस में नहीं जाने देगी जिसका वीनस के मुकाबले उल्टा असर यह होगा कि पृथ्वी का वातावरण और ज्यादा मोटा हो जायेगा, जिससे सर्फेस टेम्प्रेचर धीरे-धीरे तीन हजार के पार चला जायेगा और एटमास्फियरिक प्रेशर इतना होगा कि जमीन पर खड़े होंगे तो लगेगा कि कोई ट्रक लाद दिया गया हो।
बहरहाल, वैज्ञानिक उस स्थिति के मद्देनजर इस पर भी चिंतन कर रहे हैं कि क्या वे भविष्य में एस्टेराईड्स की ग्रेविटी यूज करके पृथ्वी को सोलर सिस्टम में पीछे की तरफ धकेल सकते हैं.. लेकिन आप फिलहाल सिर्फ वीनस पर फोकस कीजिये क्योंकि वह सब देखने के लिये हम नहीं होंगे।

Written by Ashfaq Ahmad

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