मानव विकास यात्रा 6
होमोसेपियंस का सामाजिक गढ़न
जब आबादियों ने स्थाई ठिकाने बसाने शुरू किये तो उनके जीवन के साथ रहन सहन में भी बड़ा बदलाव आया। सभी एक साथ खेती नहीं कर सकते थे, और भी दूसरे कामों की जरूरत थी.. मसलन कोई कपड़े बनाने वाला हो, तो कोई जूते चप्पल बनाने वाला तो कोई मजदूर कोई बढ़ई हो तो वैध.. दूसरे सभी एक टाईम में एक ही चीज नहीं उगा सकते थे.. कोई कुछ उगा रहा था तो कोई कुछ तो कोई बागबानी कर रहा था। ऐसे में विनिमय जरूरी था, ताकि सभी का काम चलता रहे।
यानि किसी के पास सेब हैं तो वह कुछ सेब दे कर जूते हासिल कर सकता था, या गेंहू चावल हासिल कर सकता था.. एक वैध किसी को यह सोच के औषधि दे सकता था कि वह उससे अगले दिन कोई मजदूरी करा लेगा लेकिन इस तरह का विनिमय किसी अर्थव्यवस्था के लिये बेहद पेचीदा व्यवस्था है। क्योंकि इसमें विनमय जरूरत पर आधारित होता था तो चुकाई जाने वाली कीमत हर बार नये सिरे से तय करनी पड़ सकती थी। इसे एक माॅडल के तौर पर यूँ समझते हैं कि अगर बाजार में सौ अलग-अलग वस्तुओं का लेनदेन होता है तो खरीदार और विक्रेता को लगभग पांच हजार तक विनिमय दरों को जानना जरूरी होता है और वस्तुएं और ज्यादा होंगी तो उसी अनुपात में यह दरें बढ़ जायेंगी।
उदाहरणार्थ आप मोची से जूते लेते हैं लेकिन आपके पास देने के लिये सेब हैं जो उसे नहीं चाहिये.. उसे बाल कटवाने हैं तो आप एक बाजार में एक नाई ढूंढते हैं जो आपके सेब ले कर उस मोची के बाल काट देगा, लेकिन अगर उस नाई के पास भी पहले से ही सेब हों तो? इन्हीं दिक्कतों से निपटने के लिये एक केन्द्रीय विनिमय व्यवस्था की जरूरत थी, यानि कुछ ऐसा जिसकी वैल्यू हर स्थिति में समान रहे और उसे एक तरह की गारंटी के तौर पर इस्तेमाल करते हुए आप किसी भी तरह का विनिमय कर सकें.. तब पैसे की अवधारणा स्थापित हुई।
पैसे का इस्तेमाल
पैसे की रचना अनेक बार और अनेक जगहों पर हुई.. सिक्का या नोट ही पैसा नहीं है। पैसा वह कोई भी वस्तु है, जिसका इस्तेमाल लोग अन्य वस्तुओं या सेवाओं के मूल्य के व्यवस्थित निरूपण के लिये कर सकें। इसकी वैल्यू स्थिर रहती थी और एक्सचेंज के लिये कोई दिमाग नहीं खपाना पड़ता था। पैसे में सबसे जाना पहचाना सिक्का यानि मुद्रित धातु का मानकीकृत टुकड़ा है लेकिन उसकी ईजाद से काफी पहले से 'पैसा' वजूद में रहा है। शुरुआती सभ्यतायें कौड़ियों, गाय बैलों, चमड़ा, नमक, अनाज, मनकों, कपड़ा और इकरारी रुक्को को 'मुद्रा' की तरह इस्तेमाल करते हुए फलती फूलती रहीं।
समूचे अफ्रीका, एशिया और समुद्री महाद्वीपों में 4000 साल तक पैसे के रूप में कौड़ियों का इस्तेमाल होता रहा। अंग्रेजी राज के दौरान युगांडा में बीसवीं सदी के शुरुआती वर्षों तक कौड़ियों के रूप मे करों का भुगतान होता रहा है। आधुनिक जेलों और युद्धबंदी शिविरों में पैसे के रूप में सिगरेटों का भुगतान होता रहा है.. धूम्रपान न करने वाले कैदी भी सिगरेटों को भुगतान के रूप में स्वीकारने और दूसरी वस्तुओं/सुविधाओं का मूल्य सिगरेट से आंकने में तैयार होते रहे हैं। विनिमय के लिये 'पैसा' आज भी एक सार्वभौमिक माध्यम है.. 'पैसा' हालाँकि कोई भौतिक वास्तविकता नहीं है, इसकी वैल्यू हमारी साझा कल्पना में होता है पर यह विनिमय का सबसे कामयाब माध्यम है।
3000 ईसा पूर्व सुमेरियाई लोगों ने पैसे के रूप में 'जौ' का प्रयोग किया था यानि जौ पैसा, जो सीधे-सीधे जौ ही था, जिसे एक सिला के तौर पर बनाया जाता था जो मोटे तौर पर एक लीटर के बराबर होता था। तनखाहें भी जौ की सिलास के रूप में दी जाती थीं। एक पुरुष मजदूर महीने में साठ सिला और स्त्री मजदूर तीस सिला कमाती थी। इन्हें खाया भी जा सकता था और बची हुई सिला का उपयोग दूसरी वस्तुएं खरीदने में किया जा सकता था, लेकिन इसके साथ कई समस्यायें थीं.. इसे सहेज कर रखना, संग्रह करना, परिवहन करना मुश्किल काम था।
चांदी के सिक्के
तब ईसा पूर्व तीसरी सहस्राब्दी के मध्य में प्राचीन मेसोपीटामिया में 'पैसा' शेकल के रूप में सामने आया जो कि सिक्का नहीं बल्कि 8.33 ग्राम चांदी होती थी, जिसका इस्तेमाल न कृषि में हो सकता था न युद्ध में न खाने में लेकिन इसे संग्रह करना या परिवहन करना आसान था।
इतिहास के पहले सिक्के 640 ईसा पूर्व पश्चिम अनातोलिया में लीडिया के राजा अलियाटीस द्वारा ईजाद किये गये थे। इन सिक्कों का सोने या चांदी का एक मानक वजन हुआ करता था और इन पर एक पहचान चिन्ह अंकित होता था। यह चिन्ह एक तरह की घोषणा होता था कि यह राज्य व्यवस्था द्वारा निर्धारित मूल्य है और इसकी नकल मतलब राज्य से विद्रोह, जिसकी सजा मौत तक हो सकती थी।
चूँकि लोग राजा की सत्ता और सत्यनिष्ठा पर भरोसा करते थे इसलिये नितांत अजनबी लोग भी सबसे प्रचलित रोमन सिक्के डिनायरिस पर सहज भरोसा कर लेते थे। सम्राट की सत्ता भी डिनायरिस पर टिकी थी.. सोचिये की डिनायरिस की जगह जौ की सिला होती तो.. दूर दराज तक फैली सत्ता में करों के रूप में जौ वसूलते, उसे ढो कर रोम लाते और फिर वेतन के रूप में उसे फिर ढो कर अपने सैनिकों और कर्मचारियों तक ले जाते।
रोम के सिक्कों का क्रेज इतना जबरदस्त था कि डाॅलर की तरह ही साम्राज्य से बाहर भी इसकी समान स्वीकृति थी और यह रोम से हजारों किलोमीटर दूर भारत में भी पहली शताब्दी में लेनदेन का स्वीकृत माध्यम थे। डिनायरिस में भारतीयों का भरोसा ऐसा था कि बाद में जब उन्होंने खुद के सिक्के ढाले तो वे रोमन सम्राट की तस्वीर समेत दीनार की करीबी नकल हुआ करते थे। मुस्लिम खलीफाओं ने भी इसका अरबीकरण करते हुए 'दीनार' जारी किये। जार्डन, इराक, सर्बिया, मैसेडोनिया, ट्यूनिशिया समेत कई देशों में आज भी 'दीनार' अधिकृत मुद्रा है।
जिस वक्त लीडियाई शैली के सिक्के भूमध्यसागर से ले कर हिंद महासागर तक फैल रहे थे, उसी वक्त चीन ने एक हल्की अलग मुद्रा प्रणाली विकसित की जो कांसे के सिक्के और सोने, चांदी की बेनिशान सिल्लियों पर आधारित थी। इन दोनों मुद्रा प्रणालियों में पर्याप्त समानता थी कि चीनी और लीडियाई क्षेत्र के बीच घनिष्ठ मौद्रिक और वाणिज्यिक सम्बंध विकसित हो गये थे और आगे मुसलमानों, योरोपीय व्यापारियों और विजेताओं ने लीडियाई प्रणाली सोने चाँदी की मुद्रा को सुदूर कोनों तक पहुंचाया।
आधुनिक युग के परवर्ती दौर तक आते आते सारी दुनिया एक एकल मौद्रिक क्षेत्र में बदल चुकी थी जो पहले तो सोने और चाँदी में भरोसा करती रही और उसके बाद ब्रिटिश पाउंड और अमेरिकी डाॅलर जैसी कुछ विश्वसनीय मुद्राओं पर।
Written by Ashfaq Ahmad
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