But-e-Aswa/बुत-ए-अस्वा
- ₹250.00
- by
- Book: But-eAswa
- Paperback: 248 pages
- Publisher: Gradias Publishing House
- Language: Hindi
- ISBN-13: 978-8194871897
- Product Dimensions: 21.59 x 13.97 x 2 cm
'बुत-ए-अस्वा' की कहानी वहां से शुरु होती है जहां से 'आतशीं' की कहानी ख़त्म हुई थी। पिछले भाग में आपने पढ़ा कि तीन अलग-अलग किरदार किस तरह अपनी प्रेम कहानियों को जीते हुए आगे बढ़ रहे थे—
'आतशीं' की कहानी शुरु हुई थी सफीर से, जो एक आर्मी कानवाय पर हुए हमले में फंस जाता है और अपनी भूतपूर्व प्रेमिका को उठा कर ले जाते देख अपहरणकर्ताओं के पीछे लग जाता है, लेकिन ख़ुद उनकी क़ैद में फंस जाता है और तब उसे चलता है कि उठाई गई लड़की रिमशा नहीं बल्कि उसकी दुश्मन जागीर की लड़की इल्मा थी, जो ख़ुद को सोशल मीडिया पर छुपा कर उसी से मुहब्बत करती थी। दोनों को अफगानिस्तान के सरहदी इलाके में ले जाया जाता है, जहां से उन्हें भागने का मौका तो मिलता है लेकिन इल्मा वापस पकड़ी जाती है और उसे पंजशीर में मौजूद एक तालिबान कमांडर ज़रगाम के पास बतौर रिश्वत भेज दिया जाता है। किसी समझौते की बिना पर सफीर को आज़ादी मिलती है लेकिन अब उसे इल्मा की मुहब्बत समझ में आ चुकी थी तो वह उसके कज़िन ओवैश के साथ उसे छुड़ाने पंजशीर जाता है और ज़रगाम के ठिकाने पर पहुंच भी जाता है।
'आतशीं' की दूसरी कहानी थी रय्यान की, जो उसी हमले से बचने के चक्कर में भटक कर एक जिन्नात लड़की गज़ल तक पहुंच जाता है और गज़ल से उसकी शादी करा दी जाती है। तब उसे पता चलता है कि यह पहले से तय था और हुकूमत पर काबिज़ ज़ालिम शाह आलम के पंजों से पंजशीर को छुड़ाने के लिये उसे ही कमान संभालनी थी। शाह आलम पहले उन दोनों को क़ैद करता है, लेकिन वे निकल भागते हैं तो वह गज़ल के पिता को क़ैद कर लेता है और अपने हत्यारे उनके पीछे लगा देता है। एक मायावी बाग़ में वे उन अजीब से मायावी बौनों का सामना करने के बाद उस जगह से निकल कर आगे बढ़ते हैं।
'आतशीं' की तीसरी कहानी उस जिन्नातों की सल्तनत के निर्वासित शहजादे आर्यन की थी, जो अपनी ही एक छिन चुकी रियासत की शहजादी मनाल के इश्क में उस तक पहुंचता है लेकिन पकड़ा जाता है। तब आज़ादी की शर्त पर उसे जिन्नातों के एक पवित्र शहर भेजा जाता है, जहां उसे शहजादी कज़ीमा को ज़हर देने के इल्जाम में फंसा दिया जाता है और उसे मनाल को बंधक बना कर वहां से भागना पड़ता है। रास्ते में वह एक घूल ओमार के हत्थे चढ़ जाते हैं जो उसके पिता ग़जावी और उसके खास साथी नज़ार से बदला लेना चाहता था और वह उन्हें बंधक बना कर अपनी सल्तनत वापस लेने की गरज से वहां पहुंचता है, जहां नज़ार को क़ैद रखा गया था।
बुत-ए-अस्वा में कहानी इससे आगे बढ़ती है... एक रहस्मयी बुत था, जो आकार-प्रकार के हिसाब से जाने किस तरह के जीव को रिप्रजेंट करता था, जिसे लेकर उस तक पहुंचे इंसानों का यह भी मत था कि वह कोई एलियन ऑब्जेक्ट हो सकता है— लेकिन उसमें यह कूवत थी कि वह की गई इच्छाएं पूरी कर सकता था और यह उसी का दिया वरदान था कि ग्रेटर अल्तूनिया नाम का वह जिन्नातों का विशाल साम्राज्य खड़ा हो पाया था… और उसी का यह श्राप भी था कि वह विशाल साम्राज्य आपसी संघर्ष में उलझ कर धीरे-धीरे खत्म हो रहा था।
एक तरफ वे जिन्नातों की हुकूमतें आपस में एक दूसरे के खून की प्यासी होकर लड़ मरने पर आमादा थीं और उनके बीच शाह आलम के रूप में वह ताक़तवर हस्ती उभर रही थी जो वापस उस बिखरी हुई सल्तनत को एक करके अपना परचम लहराना चाहता था— तो उसे रोकने के लिये इंसान और जिन्नात के बीच बनता वह गठबंधन भी अपना वजूद पा रहा था, जो स्वात की हरियाली से होते अफगानिस्तान के सहरा तक मिलती चुनौतियों से पार पाते हुए वहां पहुंच रहा था, जहां से सुधार की दिशा में एक अंतिम रास्ता जाता था— अतीत के उन दौर में, जहां से इस बिगाड़ की शुरुआत हुई थी।
उन पांच लोगों पर ही दारोमदार था, उस बुत से जुड़े श्राप को खत्म करने का और न सिर्फ उस साम्राज्य की खोई हुई खुशहाली वापस लाने का, बल्कि साथ ही उन्हें वर्तमान के उस बिगाड़ को भी दुरुस्त करना था, जो सीधे उनकी ज़िंदगी को प्रभावित कर रहा था और इस श्राप को खत्म करने के लिये उन्हें वक़्त में सदियों पीछे का सफर तय करना था— वे करते भी हैं… लेकिन वहां दूसरी मुसीबतें उनके इंतज़ार में तैयार बैठी थीं। क्या वे अपने मक़सद में कामयाब हो पायेंगे?
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