फसादी रात / Fasaadi Raat
- ₹230.00
- by
- Book: Fasaadi Raat
- Paperback: 230 pages
- Publisher: Gradias Publishing House
- Language: Hindi
- ISBN-13: 978-8196458652
- Product Dimensions: 21.59 x 13.97 x 1.5 cm
“फसादी रात” पांच अलग-अलग कहानियों का संग्रह है, उन पांच कहानियों का जो अलग-अलग क्षेत्र में घटी अपराध कथाएं हैं। इस संकलन में पांच मुख्य कहानियां ‘सपनों का रहस्य’, ‘फरेबी’, ‘शिकार’, ‘खूनी खेल’ और ‘फसादी रात’ हैं और एक अति लघु कथा ‘विषकन्या’ शामिल है। सभी कहानियां रोचक और थ्रिल से भरी हैं और उस भाव को प्रदर्शित करती हैं, जिसके अंतर्गत इस संग्रह की रचना हुई है।
अब अगर इस संग्रह की कहानियों की बात की जाये तो पहली कहानी है “सपनों का रहस्य”— यह कहानी एक ऐसे इंसान की है, जो पुणे में रहते अपने बीवी-बच्चों के साथ अपनी सामान्य ज़िंदगी गुज़ार रहा है। उसकी ज़िंदगी में कुछ भी ऐसा नहीं होता कि जिसे कोई बड़ी घटना या दुर्घटना कहा जा सकता, जिसकी वजह से उसका मस्तिष्क असमान्य व्यवहार करना शुरू कर देता— लेकिन फ़िर भी धीरे-धीरे उसे महसूस होता है कि वह कुछ अजीब से सपने देखने लगा है।
ऐसे सपने जिनका न उसकी ज़िंदगी से कोई लेना-देना है, न उन सपनों में दिखने वाले किसी चेहरे को वह पहचानता है और न ही उन जगहों को, जो उसे सपने में दिखाई देती हैं। वह सारे सपने उसे एक दूसरे से असम्बंधित लगते हैं— किसी एक सपने का दूसरे सपने से कोई कनेक्शन उसे नहीं समझ में आता, लेकिन यह उसे ज्यादा सटीकता से, बिलकुल रियलिटी की तरह महसूस होते हैं, बार-बार रिपीट होते हैं और न सिर्फ आँख खुलने के बाद उसे अच्छी तरह याद रहते हैं, बल्कि वह उसे बुरी तरह परेशान भी कर देते हैं।
साथ ही वह यह भी पाता है कि उन सपनों में सात मर्डर हुए थे, ऐसे मर्डर जिन्हें बड़ी सफ़ाई से प्राकृतिक घटना या दुर्घटना के रूप में स्थापित कर दिया गया था और अब सिवा उसके यह कोई नहीं जानता था कि वे हत्याएं थीं— क्योंकि उन्हें कैसे अंजाम दिया गया था, यह उसने इन सपनों के सहारे देखा था और ऐसा करने वाला वह ख़ुद था… जबकि उसे पूरा यक़ीन था कि उसकी ज़िंदगी में ऐसा कुछ नहीं हुआ था। फिर आखिर क्या रहस्य था उन सपनों का?
संग्रह की दूसरी कहानी “फरेबी” है— यह कहानी तीन किरदारों की अपराध से संलिप्तता की है, जहां दो पति-पत्नी हैं और एक युवा गेस्ट, जो गोवा घूमने आता है और होम स्टे के नाम पर ऐसे घर में रुकता है, जहां एक अलग ही खेल चल रहा था। कहानी में तीन किरदार हैं, किसी के लिये भी यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि कौन असल में क्या खेल, खेल रहा है और किसकी मंशा क्या है। जो भी अंतिम सच है, वह कहानी के अंतिम हिस्से में सामने आता है और शिकारी ख़ुद ही शिकार बन जाता है।
“शिकार” इस कलेक्शन की तीसरी कहानी है— यह कहानी आज की महत्वाकांक्षा से भरी अपरिपक्व पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करती एक लड़की की कहानी है, जिनके लिये उनकी प्राथमिकताएं ही सबकुछ हैं और वे उसके लिये वे किसी भी हद तक जा सकते हैं। जो शिकार की कहानी है, वह अक्सर हम समाचारों में पढ़ते हैं— कि फलां लड़के/लड़की ने अपने किडनैप की साजिश रची। कारण कि उन्हें अपने माता-पिता से अपनी कोई ऐसी ख्वाहिश पूरी करानी थी, जो वे जायज़ तरीके से पूरी नहीं करा पा रहे थे। अक्सर ऐसे खेल, खिलाड़ी की अपरिपक्वता के चलते फौरन पुलिस की पकड़ में आ जाते हैं।
शिकार की रिद्धि भी एक ऐसा ही प्लान करती है और उसे साथ मिलता है एक ऐसे इंसान का, जो उसकी कल्पना से कई गुने ज्यादा शातिर था और जिसे पुलिस के हर एक्शन का एडवांस में अंदाज़ा था और बचाव के सारे तरीके उसके पास थे। अब तक खेले गये ऐसे किसी भी खेल से अलग वह इस खेल को पूरी कामयाबी के साथ ख़त्म करता है… लेकिन सवाल यह है कि इस किडनैपिंग के खेल का अंतिम रिजल्ट क्या और किसके पक्ष में रहा था?
इस कलेक्शन की चौथी कहानी है “खूनी खेल”, जो एक ऐसे खेल को लेकर है जो सहज और स्वतःस्फूर्त होती घटनाओं को लेकर है लेकिन असल में सभी संभावित परिणामों को नज़र में रख कर जिसे किसी खिलाड़ी द्वारा खेला जा रहा था और खेल में मोहरे की तरह इस्तेमाल हो रहे रॉबिन डी’क्रूज़ को यह समझ में ही नहीं आ पाता कि वह उस खेल का मुख्य खिलाड़ी नहीं बल्कि एक मामूली मोहरा भर था।
वह इत्तेफाक से उस खेल में आ फंसा था और दुर्योग से एक्सीडेंट में अपने सर पर चोट खा बैठा था— जहां उसका दिमाग़ ही उसके साथ अलग तरह का खेल खेलने लग गया था। उसे अपने जीवन से जुड़ी पिछली बातें कभी एकदम से भूल जाती थीं, कभी टुकड़ों में याद आती थीं और कभी मिक्स हो कर याद आती थीं कि उसके लिये सही तस्वीर समझनी मुश्किल हो जाती थीं और कभी-कभी ऐसे में वह हेल्यूसिनेट भी अलग करने लगता था। ऐसी कमज़ोर दिमाग़ी हालत में सहारे के लिये वह जिस बीवी का हाथ थामता है— उससे सम्बंधित कई अहम सवालों के जवाब उसे सिरे से याद ही नहीं थे।
खेल कई लाशों के साथ अपने अंतिम चरण में पहुंचता है तब उसे इस खेल की सच्चाई पता चलती है। याद तो पूरी तरह उसे कुछ नहीं आता, लेकिन कुछ अनुमान और कुछ उन अहम पलों में हासिल जानकारी के दम पर वह उस सारे खेल का एक खाका तो खींच पाता है, लेकिन वहां उसके लिये पीछे छोड़ी गई कई लाशों के सिवा था और कुछ नहीं।
इस संकलन की पांचवी कहानी “फसादी रात” है, जो दिल्ली में गुज़री अट्ठाईस अप्रैल की रात को घटनाओं की एक ऐसी शृंखला में फंस जाता है, जहां दो जगह उसे यौनसुख मिलता है तो तीसरी जगह उसके हाथों एक जान भी चली जाती है और उसकी ज़िंदगी की दिशा और दशा एकदम से बदल जाती है। कल तक साफ़-सुथरी छवि के साथ एक सामान्य ज़िंदगी गुज़ारने वाले शख़्स की ज़िंदगी एक चक्रव्यूह में फंस कर बर्बाद हो जाती है और उसे एक फ़रार अपराधी के रूप में न सिर्फ शहर बल्कि देश ही छोड़ना पड़ता है। वह काठमांडू में जा बसता है लेकिन उसकी किस्मत उसे एक दिन फ़िर उन्हीं लोगों के सामने ला खड़ा करती है, जो उस खेल के मुख्य खिलाड़ी थे— जिस खेल ने उसे तबाह कर दिया था। अब सवाल यह था कि वह उनसे अपना हिसाब-किताब किस तरह चुकता करे।
संग्रह की अंतिम कहानी “विषकन्या” है— जो एक ऐसी मामूली लड़की की कहानी है जिसने अपने ख़ूबसूरत जिस्म को हथियार बनाया और बड़ी-बड़ी कामयाबी हासिल की… लेकिन अंततः उसे भी हासिल वही हुआ, जो वह औरों को देती थी।
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